बुधवार, 22 दिसंबर 2021

दौर




पत्थर को पूजने वाले,

पत्थर से आग पैदा करते करते,

पत्थर के हो गए ...

यकीं मानिये,
दौर यूँ चला यह
कि
बिन आँच के ही
स ब
झुलसते चले गए ... ...

- निवेदिता दिनकर

तस्वीर : मेरे द्वारा खींची दौर ऐ शाम की , लोकेशन : आगरा 

शुक्रवार, 10 दिसंबर 2021

क़लम और खुरपी में कोई अंतर ?

 


क़लम और खुरपी में कोई अंतर नहीं है,
सो कुछ छोटी फूलों सी गुदगुदी करती गुलाबी गुलदाऊदी कविताएं
तो कुछ लंबी लहराती लौकी नुमा ...
रहस्यमय भी क्योंकि इनकी पंक्तियां रात भर में बढ़/चढ़ सकती हैं।
स्पर्श में आते ही साॅटन के बेल की तरह भीतरी परत तक गुदगुदा कैसे जाती हैं,
यह तिलस्म शाय़द ही कोई शायर समझ/समझा पाए!!

और
अंदाज़ ए इश्क से कोसों दूर ...
या
क री ब ...??
को भांपकर
लौटती हूं,
बस स स ...
मुट्ठी बंद रखना, तब तक

बुधवार, 20 अक्टूबर 2021

लाल हवेली !!




एक आला कथाकार, उपन्यासकार, बारीकी से रिश्तों को बुनने वाली शिवानी जी को

उनके जन्मदिवस व प्रत्येक दिवस पर मेरा प्रणाम |

उनकी लिखी अति संवेदनशील कहानी ''लाल हवेली'' का पाठ करते हुए मैं कई बार सिहरी ...

स्त्री दर्पण व विमल कुमार जी का हार्दिक आभार जिन्होंने मुझे इतना बड़ा मंच दिया ...

बुधवार, 11 अगस्त 2021

पर

 








यादों के काफ़िले में नायाब चीज़े ही हो , जरूरी नहीं  ...

पर रेंगती ज़िन्दगी में बहार जरूर ले आती है  ...   

- निवेदिता दिनकर 
  १०/०८/२०२१ 

शनिवार, 10 जुलाई 2021

कमल यात्रा

 तुम्हारी हर मुद्रा को ठहर कर देखती हूँ ...

बस, तुमसे मिलने का इंतज़ार चाहिए या चाहिए एक आहट या आहट जैसा ... तो आज कमल यात्रा पर चलते हैं  ...
एक खूबसूरत यात्रा 
दोस्तों , आप भी अपने कमल अनुभव हमसे साँझा कीजिये न  ...

- निवेदिता दिनकर
  08/07/2021



रविवार, 11 अप्रैल 2021

घुन्नेट वाली कविता ...




 

कहाँ हर बार फसल पक पाती है ??!!
कहाँ मुरादे ??!!
और
हर बार क्या पंक्तियाँ पूरी हो पाती हैं ?

चाय के ...
भाप पर तुम्हारी आकृति बनाने की मिथक कोशिश ...

चींटियों की तारीफ में कसीदे पढ़ते पढ़ते ...
जान लेना,
कि ...
चिड़ियों के परों पर बैठकर अंतरिक्ष की सैर करने निकल पड़ने को
ब्लैक होल के रहस्य के बराबर मान लिया है |

- निवेदिता दिनकर

तस्वीर : मेरे द्वारा क्लिक 

बुधवार, 3 मार्च 2021

किस्सागोई 




 

(१)
कुछ देर बाद वह भीड़ वाली गली को छोड़ पेड़ों और हरी भरी घास के जंगल में पहुँचा | वहाँ की शुद्ध और ताज़ी हवा उसे बहुत अच्छी लगी ...
( २)
थोड़ी देर उड़ने के बाद बेनी चिड़ा थक गया | एक पीपल के पेड़ की मोटी टहनी पर वह बैठ गया और आंखें मूंदकर सुस्ताने लगा ...
( ३)
गोली की आवाज़ सुन सुरीली चौंकी | नीचे नज़र गई तो हैरान रह गई | इस से पहले शिकारी दोबारा गोली चलाता वह उड़ गई | अपने दोस्त को सुरक्षित जाते देख मीठी बहुत खुश हुई |
(४)
नदी के किनारे एक बड़ा पीपल का पेड़ था | उसके तने के छोटे छेद में चीची चींटी ने अपना घर बना रखा था | वह उसमे बड़े आराम से रहती थी ...
( ५ )
यह सम्मोहन अभी सोये हुए हैं
चलो, खटखटाते है ...
- निवेदिता दिनकर
०२/०३/ २०२१

सोमवार, 1 मार्च 2021

धीरे धीरे हौले हौले ...




 नदी के किनारे एक बड़ा पीपल का पेड़ था |

उसके तने के छोटे छेद में चीची चींटी ने अपना घर बना रखा था | वह उसमे बड़े आराम से रहती थी ...


ऐसे किस्सों को दोबारा खोज रही हूँ ...
धीरे धीरे हौले हौले ...

- निवेदिता दिनकर
01/03/2021


शुक्रवार, 26 फ़रवरी 2021

सफर


 


सड़क के दोनों तरफ हरियाली होती है तो सफर खुद ब खुद ख़ुदा हो जाता है |

सड़क के एक तरफ पेड़ पौधे लताएं पत्ते दिख जाने पर भी, आबोहवा सुकूनदायक, खूबसूरत और आनंदमय हो जाता है कुछ परिमाण ...
पर
यही सफर वीराने और सूखे से होकर गुजरता है जब, तब गुजरे दिनों की ठंडक , ख़ूबसूरती और ख़ुदा को बक्से से बाहर बुलाकर खुद को चमत्कार दिखाना होता है |

चमत्कार !! ??

दिखता बंद आँखों से जो ,
चिड़ियों के कलरव सा स्पर्श ...
ओस से भीगी टेबिल, कुर्सियां जो रात भर गपशप में बाहर रहकर चांदनी की सिसकियों में डुबकी लगाती रही हो ...
अखबार के पन्नों पर नहीं आ पाने वाली बेखौफ़ खबरों की आज़ाद हँसी ...
कोयले के देह को छूती लहराती लिपटने को आतुर नारंगी लौ ...

मेरी मुक्ति ने अभी नवयौवना का रूप लिया भर ....

- निवेदिता दिनकर
२६/०२/२०२१

सोमवार, 15 फ़रवरी 2021

पुरानी धुरानी कविता !!!

 







चाँद भी दोपहर का बहाना कर छुप गया ...

माघ के मेघ में वह गर्जन ही कहाँ !!
बैसाखी का आड़ लिए अलग बैठा रहा ।
सूरज का गला तो सूखना ही था , रे
पानी पानी माँगता रहा ...
बसंत तो तेरे सूरतिया पर, सांवरी ...
पर
यह ख़बर ,
तुझे भी कहाँ ख़बर, बावरी ...

- निवेदिता दिनकर

तस्वीर : मेरे कार्य स्थल से ... कॉपीराइट पूरी मेरी

मंगलवार, 2 फ़रवरी 2021

इलज़ाम




 इलज़ाम है

कि
गिलहरी और कबूतर एक साथ
बाजरे को चुगने को लेकर झगड़ते पाये गए ...
इस प्रकार से
''बाजरे'' के ऊपर
देश द्रोह का मामला
किसी भी क्षण लग सकता है ...

- निवेदिता दिनकर
30/01/2020

तस्वीर : टेरेस गार्डन से फुदकते कबूतर और गिलहरी , लोकेशन : आगरा 

शनिवार, 30 जनवरी 2021

देश प्रेम


 



( १ )
दूर-दूर तक फैले हरियाली को देखकर
और
कानो में पडती सुमधुर संगीत जैसी संपन्न संस्कृति में सराबोर होकर
जब उसी धरातल पर 1905 में लार्ड कर्ज़न की नीति
"डिवाइड एंड रूल "
"फूट डालो और राज करो " की नीति एक बार फिर साबित होती हो ...
( २ )
आग चालाक हो चली ...
आधा पौना चिंगारी से ही तीव्रता का,
उसे आभास हो गया ...
( ३ )
मैं दौड़ता रहा ...
दौर, दरख़्त, दस्तूर, दया,
द ऐ श
से !!
- निवेदिता दिनकर
३०/०१/२०२१

तस्वीर : द्वारा निवेदिता दिनकर , लोकेशन माल रोड , शिमला

रविवार, 17 जनवरी 2021

हल्का करने के लिए ...




हम बात करते करते

कई बार

कसैले हो गये ...
इस कसैलेपन को हल्का करने के लिए
कुछ नहीं किया ...
आँखों से छुवन के सिवा !!

- निवेदिता दिनकर
११/०१/२०२१

तस्वीर :  कमरे से बाहर का दृश्य , बेहडाला गॉंव जिला उना, हिमाचल प्रदेश

शुक्रवार, 15 जनवरी 2021

छुट्टी वुट्टी ...


(१)

दाँत के दर्द से कराहते राजू ने माँ से कहा,
खूब पीरा रा है, मम्मी ...
चुप्प, अभी उनके घर बहुत रिश्तेदार आये हुए है, मैं छुट्टी नहीं ले सकती ...
(२)
पापा, आज मत जाओ कोठी पर, मेरा जनम दिन है ...
(३)
''अपना टेंशन खुद सम्हालो , कल मेरी वैसे ही छुट्टी हो गयी है, किसी घर में नहीं जा पायी| मैं जा रही हूँ | ''
बेटी को बोल दिया आज मैंने भाभी ...
" बोलती है, तुम अपने को तो देखती नहीं , डॉक्टर को दिखाती नहीं | कल सारा दिन बैठी रहीं वहाँ | जाने वाला तो चला गया ... "
(४)
तब से छुट्टियाँ थरथरा रहीं हैं !!
- निवेदिता दिनकर
१२/०१/२०२१