(१)
दाँत के दर्द से कराहते राजू ने माँ से कहा,
खूब पीरा रा है, मम्मी ...
चुप्प, अभी उनके घर बहुत रिश्तेदार आये हुए है, मैं छुट्टी नहीं ले सकती ...
(२)
पापा, आज मत जाओ कोठी पर, मेरा जनम दिन है ...
(३)
''अपना टेंशन खुद सम्हालो , कल मेरी वैसे ही छुट्टी हो गयी है, किसी घर में नहीं जा पायी| मैं जा रही हूँ | ''
बेटी को बोल दिया आज मैंने भाभी ...
" बोलती है, तुम अपने को तो देखती नहीं , डॉक्टर को दिखाती नहीं | कल सारा दिन बैठी रहीं वहाँ | जाने वाला तो चला गया ... "
(४)
तब से छुट्टियाँ थरथरा रहीं हैं !!
- निवेदिता दिनकर
१२/०१/२०२१
जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शनिवार(१६-०१-२०२१) को 'ख़्वाहिश'(चर्चा अंक- ३९४८) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है
--
अनीता सैनी
अशेष शुक्रिया ... मुझे ख़ुशी हुई
हटाएंथरथरा रही छुट्टियां बहुत खूब ।
जवाब देंहटाएंअशेष शुक्रिया ... मुझे ख़ुशी हुई
हटाएंलाजवाब एवं भावों से परिपूर्ण रचना..
जवाब देंहटाएंमुझे ख़ुशी हुई ... शुक्रिया
हटाएंअति संवेदनशील ।
जवाब देंहटाएंअशेष शुक्रिया ... मुझे ख़ुशी हुई
हटाएंबहुत ही सुन्दर सृजन - - एक अलहदा एहसास।
जवाब देंहटाएंअशेष शुक्रिया ...
हटाएंअशेष शुक्रिया ...
जवाब देंहटाएंअशेष शुक्रिया ... मुझे ख़ुशी हुई
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