शुक्रवार, 25 जुलाई 2014

बस एक बार


निश्छलता, उल्लास, उमंग, 
बेफिक्री, बेपरवाह, हुड़दंग … 
यही तो है 'हम' 
और 
हमारे अल्हड़ रंग ढंग। 

परिंदे, तितली, हवा,  
बादल, बिजली, घटा … 
यही तो है 'हम' 
और
हमारे पलते ख्वाब संग।  

फूलपत्तियां, तरु, 
पलाश, गुड़हल, टेसू ... 
यही तो है 'हम' 
और
हमारे न्यारे मस्त मलंग।  

कागज़, कलम, कल्पना, 
उत्साह, उड़ान, बचपना  …    
यही तो है 'हम' 
और
हमारे जोशीले ढोल मृदंग।  
   
समय को 'बस एक बार' पीछे लौटाने का मन जो हुआ है, काश !! 

- निवेदिता दिनकर
२४/०७/२०१४   

नोट : यह नटखट बच्चे काजल, रूपा, आरती, राजु, अंजली  जिनके माता पिता या तो कहीं दरवान है या मज़दूर या ड्राइवर है एवं हर शाम हमारी सासु माँ से निःशुल्क पढ़ने आते है, तो सोचा इनकी तस्वीर लूँ , फिर सोचा, कुछ नादानों के लिए लिख भी डालूँ …           

शुक्रवार, 18 जुलाई 2014

वृष्टि


तुम्हें याद करते हुए … 

वृष्टि के बूँदों की ढलक,
चमकीली रेशम सी झलक।  
फूल  पत्तियाँ बनी बतख, 
भीगी भीगी मैं अब तलक ॥  

- निवेदिता दिनकर 

गुरुवार, 10 जुलाई 2014

तुम्हारी बातों में

 तुम्हारी मीठी मीठी बातों में 
इतना रस घुला हुआ,
मानों, बन जाती मैं मिट्टी 
सौंधी तरावट सी  …  
           
           
तुम्हारी बहकी बहकी बातों में 
इतना जादू भरा हुआ,
और बन जाती मैं छटपटी 
लीन विक्षिप्ता सी …      

           
तुम्हारी बाँकी तिरछी बातों में 
इतना तंज भरा हुआ 
फिर बन जाती मैं परिधि 
आकाशगंगा आकृति सी  … 

- निवेदिता दिनकर    

शनिवार, 5 जुलाई 2014

हे कांत!

हे कांत,

आज,
आज जब तुम 
चले गए,
चले गए बहुत दूर 
ज्ञान की खोज में चूर, 
त्याज्य मुझ और तनुज  .... 
एकदम अकेला,
निसहाय, 
बेबस  …  
सचमुच,
कितने निष्ठुर …  

क्या एक बार भी 
तुम्हारे 
पैर नहीं डगमगाए,    
साथ सोता छोड़ कर 
ह्रदय नहीं अकुलाए, 
माथे पर 
लकीरें नहीं गहराए, 
आँसू नहीं छलछलाए  …  

कि 
कैसे वेदना सहेगी? 
क्यों वेदना सहेगी ?

सिर्फ इसलिए न,
ज्ञान की खोज 
ही  
अंतिम  खोज है। 

हाँ, मुझे दरकार 
है तुम्हारी,
तुम्हारे नीरधि रूपेण प्रणय की        
तुम्हारे खुशबू रूपेण तारुण्य की,
तुम्हारे  प्रकाश रूपेण छुअन की,
तुम्हारे करुणा रूपेण असुवन की,
तुम्हारे  पाश रूपेण आसरा  की,
तुम्हारे बोध रूपेण आत्मा  की … 

क्योंकि 
मैं तुम्हारी 
यशोधरा 
केवल 
तुम्हारी …

- निवेदिता दिनकर  
  ०५/०७/२०१४