कितनी बेचैन थी … 
हैरान परेशान, 
पथरायी आँखे, 
भर्राया गला, 
पूछने लगी  …  
क्यों ?
मैं ही, क्यों ?
बदचलन कहलाती  …  
गुनाहो से आँकी जाती , 
विशुद्धिकरण, 
खुलासा, 
बेईज्ज़त, 
और थोड़ी 
बेईज्ज़ती   … 
गलतियों का ठीकरा   … 
इलज़ाम, 
चाँद की रौशनी में नहायी हुई हो  
या 
काजल नयन अमावस्या   …   
सबका दोषारोपण।  
फिर बोली, 
तुम औरतों की तरह  …  
हमेशा 
'रात' ही क्यों निशाने पर ??
- निवेदिता दिनकर
  १९ /०३/२०१५  
तस्वीर : उर्वशी दिनकर द्वारा 'टिमटिमाते रौशनी में नहायी झील', लोकेशन नौकुचियाताल 
