गुरुवार, 19 मार्च 2015

जब 'रात' रोती रही.… रात भर



कितनी बेचैन थी … 
हैरान परेशान, 
पथरायी आँखे, 
भर्राया गला, 

पूछने लगी  …  
क्यों ?
मैं ही, क्यों ?
बदचलन कहलाती  …  
गुनाहो से आँकी जाती , 
विशुद्धिकरण, 
खुलासा, 
बेईज्ज़त, 
और थोड़ी 
बेईज्ज़ती   … 

गलतियों का ठीकरा   … 
इलज़ाम, 
चाँद की रौशनी में नहायी हुई हो  
या 
काजल नयन अमावस्या   …   
सबका दोषारोपण।  

फिर बोली, 
तुम औरतों की तरह  …  
हमेशा 
'रात' ही क्यों निशाने पर ??

- निवेदिता दिनकर
  १९ /०३/२०१५  
  
तस्वीर : उर्वशी दिनकर द्वारा 'टिमटिमाते रौशनी में नहायी झील', लोकेशन नौकुचियाताल 

गुरुवार, 12 मार्च 2015

मेरी ख़ुशी


आसमान में उड़ते उड़ते  
बादलों के संग अठखेलियाँ करने लगी  …  
तब, 
उधर से गुजरती एक चिड़िया बोली 
अरे, तुम !!
मैंने कहा, हाँ …  
आज मैं बहुत खुश हूँ। 

अब 
मैं बूंदो से दोस्ती करूंगी, 
पुरवैया मेरी सहेली बन गई है,  
अनजान रास्तों पर कूदूंगी फाँदूंगी  …
अमरुद के पेड़ पर चढ़ अमरुद तोड़ूँगी, 
झुकी टहनियों से लटकूँगी, 
अमावस रात में चाँद ढूँढूँगी,

और   

सदियों से जमी बर्फ बनकर पिघलूंगी … 

-  निवेदिता दिनकर  

पेंटिंग  : साभार गूगल 

बुधवार, 4 मार्च 2015

रात एक बात की


सुनो,
कल रात तुम पास होकर भी पास नहीं थे।  
रात भर हम बुदबुदाते रहे 
और 
इंतज़ार में रात चीरते रहे।  

सुन रहे हो न, 
आज तक 
यह सिलसिला बदस्तूर जारी है। 

- निवेदिता दिनकर 
  ०४/०३/२०१५ 

तस्वीर - मेरे द्वारा कैद "रात एक बात की"