कितनी बेचैन थी …
हैरान परेशान,
पथरायी आँखे,
भर्राया गला,
पूछने लगी …
क्यों ?
मैं ही, क्यों ?
बदचलन कहलाती …
गुनाहो से आँकी जाती ,
विशुद्धिकरण,
खुलासा,
बेईज्ज़त,
और थोड़ी
बेईज्ज़ती …
गलतियों का ठीकरा …
इलज़ाम,
चाँद की रौशनी में नहायी हुई हो
या
काजल नयन अमावस्या …
सबका दोषारोपण।
फिर बोली,
तुम औरतों की तरह …
हमेशा
'रात' ही क्यों निशाने पर ??
- निवेदिता दिनकर
१९ /०३/२०१५
तस्वीर : उर्वशी दिनकर द्वारा 'टिमटिमाते रौशनी में नहायी झील', लोकेशन नौकुचियाताल
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शुक्रवार (20-03-2015) को "शब्दों की तलवार" (चर्चा - 1923) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'