सोमवार, 19 सितंबर 2016
बुधवार, 14 सितंबर 2016
शहरी
हुस्ने इत्तिफ़ाक़ से,
ज़िद्दे पूरी होती गई और शहरी होते गए ...
पाश पाश होते रहे और पाक़बाज़ी खोते गए ...
- निवेदिता दिनकर
१४/०९/२०१६
हुस्ने इत्तिफ़ाक़ - सौभाग्य से, सुयोग, luckily
पाश पाश - टूट कर चूर चूर हो जाना , broken in pieces
पाक़बाज़ी - शुद्धता , सच्चरित्रता, purity
हुस्ने इत्तिफ़ाक़ - सौभाग्य से, सुयोग, luckily
पाश पाश - टूट कर चूर चूर हो जाना , broken in pieces
पाक़बाज़ी - शुद्धता , सच्चरित्रता, purity
तस्वीर: मेरी नज़र से 'पत्ती पर रुकी एक बूँद', लोकेशन : मेरा घर, आगरा
गुरुवार, 8 सितंबर 2016
सदस्यता लें
संदेश (Atom)