असम के बारे में न्यूज़ देखते देखते मन रुआँसा हो गया। कौन है यह बोडो ? क्यों चाहिए बोडो लैंड ?
कितने नरसंहार और कब तक ? इन लोगों की आत्मा जागती नहीं ? क्या यह मनुष्य नहीं ? क्या गरीबी मूल कारण है ? या निरक्षरता या बेरोजगारी या कोई कलुषित राजनीति ?
एक रणवीर सेना भी हुआ करती थी , ताबड़तोड़ गोलियाँ , कुछ दिन अखबारों की सुर्खियां फिर एक और काले दिन का इंतज़ार ।
अब इतने कलियट तो हो गए है कि पहचानना भी मुश्किल।
अब तो काली स्याह रात को भी पीछे छोड़ दिया, दानवों ।
- निवेदिता दिनकर
२७/१२/२०१४
तस्वीर उर्वशी दिनकर के सौजन्य से "अलमस्त" , लोकेशन भीमताल