आज 'सिन्दूरी शाम' मासूमियत के रंगो में लिपटी ऐसे ज़मीन पर उतरी कि
उसकी चमक उसकी रौशनी उसकी बंदगी, बेहाल कर गई |
हुआ यूँ कि सड़क पर विचरण करने वाले मेरे चार दोस्त , प्यारे श्वान, में से दो, अपने भोजन के लिए मेरे घर के सामने एकत्र हुए तो देखा देखी एक गाय माते भी आ पहुँची और फिर जम कर "पहले मैं " "पहले मैं " का नारा लगाते हुए मिलजुल कर रोटी खाने लगें, पानी पीने लगें |
डार्विन जी की थ्योरी सर्वाइवल ऑफ़ द फिटेस्ट, स्ट्रगल फॉर एक्सिस्टेंस भी कामयाब दिख रही थी|
नज़ारा बेहद दुर्लभ था, बिना उनसे सहमति लिए, खूबसूरत तस्वीर लूट लिए |
दिल की ख़ुशी देख दिमाग सवालों में उलझ गोता लगाने लगा कि हम मिलजुल कर रोटी कब खाएँगे ?
तेरे बिना ज़िन्दगी से कोई
शिकवा तो नहीं, शिकवा नहीं, शिकवा नहीं
तेरे बिना ज़िन्दगी भी लेकिन
ज़िन्दगी तो नहीं, ज़िन्दगी नहीं, ज़िन्दगी नहीं
शिकवा तो नहीं, शिकवा नहीं, शिकवा नहीं
तेरे बिना ज़िन्दगी भी लेकिन
ज़िन्दगी तो नहीं, ज़िन्दगी नहीं, ज़िन्दगी नहीं