गुरुवार, 31 मई 2018

जस्ट वॉन बकेट ऑफ़ वॉटर ...



पानी
अगर सीधे नल से न लेकर... 
आर ओ या वाटर पयूरिफायर का हो,
तभी शुद्ध मानते है।
बॉटलड हो तो और बेहतर।
बिसलेरी या वेदिक का हो तो क्या कहने।
अपने जीवन का स्तर कितना ऊँचा करते जा रहे है, न...
बड़े ही एलीट क्लास।
रादर क्लास बियोनॅड कम्पेयर ... मानना पड़ेगा।
पारा पचास डिग्री पहुँच रहा है।
हमें क्या फ़िक्र ... कुआँ थोड़ी न खोदना है।
न पानी के लाइन में घंटों खड़े होना है।
बट, हू आर दिज लेडिज?
दे आर वेटिंग फ़ार देयर टर्न...
फ़ार जस्ट वॉन बकेट ऑफ़ वॉटर |
ओह...
पुअर लेडिज...
- निवेदिता दिनकर
  30/05/2018
तस्वीर : यह आगरा के कछपुरा गॉव की है | यह महिलायें सुबह, दोपहर, शाम घंटो अपनी बारी का इंतज़ार करती हुई मिलती है | दूर दूर तक कोई दूसरा हैंड पंप भी नहीं है | उसके बाद यही महिलायें घर के बाकी  काम काज भी निपटायेंगी | 

बुधवार, 23 मई 2018

प्रश्न




पता है ,
न तो तुम में हमारे जैसे है अदब , न कायदा
न ही ज्ञान , न सलीका ,
न हुनर , न सभ्यता ,
कैसे हो इतने अलहदा ?
कहाँ से लाये मनुष्योचित अवस्था ?
शायद,
तुम मेरे प्रश्न का जवाब न दे पाओ
या
शायद
हम अपने प्रश्न का जवाब न सुन पाए ...
- निवेदिता दिनकर
  २२/०५/२०१८
सन्दर्भ : यह है मेरी बेटी 'बनी ', जो एक जर्मन शेफर्ड है | इतनी मासूम और प्यारी,
उसे  तो बिना वजह प्यार करने का मन करता है |  
कहने को श्वान , गुस्से पर गज़ब का कण्ट्रोल , घर पर नहीं रहूँ , तो खाना पीना छोड़ देती है | 
उसके प्रति यह सवाल , रचना के रूप में , असल में मुझे अपने से है | 

रविवार, 6 मई 2018

तुम्हारे प्यार में








सूरज की अथाह रौशनी
नर्म हरे पत्तों पर
जब जब पड़ी होगी 
तब तब
" तुम" 
और 
ऊँचे, चमकीले हो गए होगे | 

जब पत्तियों से छन कर किरणों ,
 हवा के मीठे झोकों ने ,
"तुम्हारे" 
गर्वीले देह पर 
स्पर्श किया होगा , 

तुम्हारे तन मन में ताज़ा स्फूर्ति दौड़ पड़ी होगी ... 
तो 
कितने पंछियों को 
दर बदर की ठोकरों से बचाया होगा| 
जो तुम्हारी नींद इन के कोलाहल से टूटती होगी 
तो शाम शाखों पर लौटने से बरकत हुई होगी | 

क्या कुछ न समेट के रखा होगा  
तुम्हारे मुलायम छालों ने | 
कितने यादों के सुनहरे पन्ने 
और 
उन पन्नों से निकलती 
सुकून देने वाली 
खस खस की ख़ास करिश्माई खुश्बुओं ने | 

 कहानियों  का जख़ीरा 
या 
जज़्बातों से बहा समुन्दर ...    

मुझे मंजूर है , 
तुम्हारे प्यार में 

' रूमी '
बन जाना  ... 

- निवेदिता दिनकर 
  ०६/०५/२०१८ 

एक अहम् बात : मेरे घर के सामने खड़े है , यह दरख़्त | एक भयानक आँधी ने इनमे से एक की जान ले ली तब से मन बेहद उदासऔर भावुक है | पहली तस्वीर आँधी से एक दिन पहले की है | कौन जानता था / है , अगले पल को ?


#आत्मखोज  # निवेदितादिनकर

मंगलवार, 1 मई 2018

फर्क




पारा चालीस डिग्री,
पसीने की बदबू , 
मिट्टी में सने कपड़े, 
कीचड़ से लथपथ फटे पैर 
तसले में सीमेंट बजरी मिलाती 
हाथ की चमड़ी उखड़ी हुई  ... 

चेहरे के लिए 
कोई शब्द नहीं दे पायी |  

उदास , खोयी हुई , एक ख़ामोशी 
या कुछ और  ... 

बस ,
सोचती रह गयी  ... 

क्या ' उदासी ' इसे ही कहते है ?

हम तो इंटरनेट नहीं चलने पर उदास हो जाते है 
या 
 एयर कंडीशनर ठंडा नहीं कर रहा हो तो  
या 
आज मेड नहीं आयी हो  ...  

मैं लौटती हूँ , उनके जमीन पर | 

 उनसे 
पूछने पर कि, 
आज क्या तारीख है ?
"पहली "
कहकर चुप |  

बताया जब, आज पहली मई है | 
आओ , तनिक अपने श्रम को मनायें  ... 

एकदम फीकी हँसी होठों पर लातीं है  ... 
नजरें झुका लिया गया   ... 

जैसे मुझे चिढ़ा रहे हो, 
क्या फर्क पड़ता है  ... 

वाक़ई , 
क्या फर्क पड़ता है? 

- निवेदिता दिनकर 
  ०१/०५/२०१८ 
#आत्मखोज  #साइटडायरीज   #निवेदितादिनकर  

तस्वीर : आज के बिताये कुछ कीमती समय , शाहजहाँ पार्क साइट , आगरा