महसूस करता हूँ
जैसे,
किसी यातना शिविर में पड़े
कैदी की तरह ...
जैसे,
किसी यातना शिविर में पड़े
कैदी की तरह ...
तो कभी
किसी मानसिक चिकित्सालय में पड़े
मनोविक्षिप्त की तरह ...
मनोविक्षिप्त की तरह ...
जिसे बोलने ,
चलने फिरने
उठने बैठने
के लिए
चलने फिरने
उठने बैठने
के लिए
अनुमति लेनी पड़े ...
साँस भी कब चली जाये
यह भी नियति नहीं ...
अनुमति तय करेगी |
यह भी नियति नहीं ...
अनुमति तय करेगी |
वीभत्सता की पराकाष्ठा,
निर्ममता चरम पर पहुँच कर सोच में पड़ जाये ,
रक्त रिसते रिसते दिशा भ्रम हो जाये ,
घाव की गहराई अनुमान रहित ...
निर्ममता चरम पर पहुँच कर सोच में पड़ जाये ,
रक्त रिसते रिसते दिशा भ्रम हो जाये ,
घाव की गहराई अनुमान रहित ...
डर और दर्द दोनों सकपकाये हुए
अब तक के सारे मापदंड ताक पर ...
अब तक के सारे मापदंड ताक पर ...
ताक पर ही मशहूर कवियों की ओजस्वी कविताएँ
सबकी सब ठिठकी हुई ...
सबकी सब ठिठकी हुई ...
ठिठके खड़े बांके बिहारी जी,
"अब 'अक्षय तृतीया' पर भी नहीं दिखाऊँगा अपने चरण "...
"अब 'अक्षय तृतीया' पर भी नहीं दिखाऊँगा अपने चरण "...
चरण चरण पर शोध प्रतिशोध ...
घर घर से रुदन गीत ...
मंद मंद मुस्करायेंगे ...
घर घर से रुदन गीत ...
मंद मंद मुस्करायेंगे ...
क्योंकि
मैं सिद्धांतवादी हूँ |
मैं सिद्धांतवादी हूँ |
- निवेदिता दिनकर
तस्वीर : " आस "