आज मौसम का मन तो मसूरी मसूरी हो रहा है और मन का मौसम चुप।
कहीं कोई दास्ताँ बरस पड़ा होगा, शायद। तभी खलबली मच रही है।
अभी इंतेहानों और इंतज़ारी का मौसम है। यानि अप्रैल मई तक परीक्षाऐं खत्म होंगी और बीच में कोई तीज त्यौहार भी नहीं। तब तक हम जैसे ऐसे ही 'इंतज़ार' को सेलीब्रेट करते रहेंगे। बच्चें कभी पढाई तो कभी नौकरी से तारतम्यता के चलते घर फोन भी कहाँ कर पाते हैं। उनकी आवाज़ जिससे धडकती हमारी जिंदगी की हँसी, साँस, गुलज़ार छटपटा जाती है। परन्तु हम अपने दिल की बात कहाँ कह पाते है उनसे, है न ?
सच है, कि व्यस्त हम सब है कहीं न कहीं। झकझोरती हूँ अवगत कराने के लिए 'अपने' को "अपने" से।
इमोशंस को उठा कर डीप फ्रिज़ में रखना सीख लिया है मैंने।
- निवेदिता दिनकर
तस्वीर : मेरे सौजन्य से : गेहूँ की बालियाँ , कछपुरा , आगरा