शुक्रवार, 7 अप्रैल 2017

लौट आओ



इंसानी बस्ती के साथ आपके और हमारे घरो में फुदकने वाला  "प्रेम " आखिर कहा चला गया ? ये सवाल पुरानी पीढ़ी के साथ नयी पीढ़ी के लिए भी आज चिंता का सबब बनता जा रहा है। 
घरों को अपनी कुचु पु चु से चहकाने वाला प्रेम  हमारे जीवन का एक अभिन्न अंग है। मनुष्य जहाँ भी मकान बनाता है, वहां प्रेम अपने आप जाकर घोसला बना कर रहना शुरू कर देता हैं।
इस ढाई अक्षर वाले खूबसूरत शब्द  का कभी इंसान के घरों में बसेरा हुआ करता था और बच्चे बचपन से इसे देखते हुए बड़े हुआ करते थे। अब स्थिति बदल गई है। जिसके परिणाम स्वरूप प्रेम  तेजी से विलुप्त हो रहा है। इस के अस्तित्व पर छाए संकट के बादलों ने इसकी संख्या काफी कम कर दी है और कहीं..कहीं तो अब यह बिल्कुल दिखाई नहीं देता और इनकी जगह धूर्त पंतियो ने ले लिया है |  
 
वैज्ञानिकों के मुताबिक इस की आबादी में 60 से 80 फीसदी तक की कमी आई है। यदि इसके संरक्षण के उचित प्रयास नहीं किए गए तो हो सकता है कि "प्रेम " इतिहास की चीज बन जाए और भविष्य की पीढ़ियों को यह देखने को ही न मिले।  
पश्चिमी देशों में हुए अध्ययनों के अनुसार प्रेम की आबादी घटकर खतरनाक स्तर तक पहुंच गई है।   लोगों में प्रेम को लेकर जागरूकता पैदा किए जाने की आज सख्त जरूरत है |   

संपादकीय विचार: कुछ दिनों से प्रेम की चहचाहट बमुश्किल सुनाई देती है। विलुप्त होता प्रेम की प्रजाति को लेकर लोगों में बचाव अभियान की मुहिम चलाई जा रही है।
काश इस मुहिम के तहत लोगों में बदलाव देखा जा सकता !!

- निवेदिता दिनकर 

तस्वीर : उर्वशी दिनकर की नायाब पेंटिंग 
  

चाँदनी




रातों की चाँदनी हो या हो चाँदनी रात |
ढूँढ ले ही लेते है हम खुश्बुओं की सौगात || 
- निवेदिता दिनकर 

तस्वीर : उर्वशी दिनकर 

गुरुवार, 6 अप्रैल 2017

इंतेज़ार


सहमे से रहते है, जब यह दिन ढलता है ...
क्यों यार, क्यों आखिर 
अब नहीं, पक्का अब नहीं ...
नो, नॉट अगेन ...
कल कहा था न, अश्क़, इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छिपते और सरे आम बहने लगते है।
अश्क़ मेरे से नहीं छिपते, मुश्क़ तुम लगाये फिरते हो
और हमारा इश्क़ ...
वह तो जगजाहिर है ...
है न ...
पता है, तुम्हें ? जब तुम्हारी कल वापिसी होगी
मैं फिर से ' मैं ' बन जाऊँगी और तुम्हें देव से फिर ' तुम ' बना दूँगी ...
दिल की बात न पूछो
दिल तो आता रहेगा
दिल बहकाता रहा है, दिल बहकाता रहेगा ...
- निवेदिता दिनकर
  06/04/2017
तस्वीर : उर्वशी दिनकर के सौजन्य से 

मंगलवार, 4 अप्रैल 2017

सुकून



उन दिनों मैं देहरादून में बेटे के पास थी जब मुझे एक फोटो के माध्यम से बताया गया कि एक दो महीने का मेहमान घर पर आया हुआ है । मुझे यह ख़बर बिलकुल भी अच्छी नहीं लगी।
मैं कोई भी प्रकार, स्पीशीज का " इंसान द्वारा प्रदत्त नाम 'कुत्ता' " नहीं रखना चाहती थी क्योंकि ...
खैर ...
असल में मेरे अंदर इमोशन्स को काबू में रखने की अक्ल का अकाल है।
अश्क़, इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छिपते और सरे आम बहने लगते है। पिछले कुछ सालों में तीन प्राणियों को खो चुकी हूँ और अब साहस नहीं है॥
लेकिन अब यह साहिबा आ चुकी है, और दो बरस की है। जैसे इनको ठंडी जमीं सुकून देती है वैसे ही इनका 'पास' होना मुझे सुकून देता है।

मेरे कानो में यह गीत बज रहा है,
मरके भी न मिटे जो, यह वो दीवानगी है ...
दिल को लगाकर देखो, प्यार में क्या ख़ुशी है ...

... और चाहिए भी क्या, बस !!


- निवेदिता दिनकर
०४/०४/२०१७

सोमवार, 3 अप्रैल 2017

मेरी नायिका - ७



" एक मुठ्ठी चावल दे दो ... 
 एक मुठ्ठी चावल दे दो "
इस चालीस डिग्री तापमान की दोपहरी में लगभग ७० साल की एक बुजुर्ग स्त्री सड़क पर जोर जोर से बोलते/पूछते हुए। 
मैं छत से देखती हूँ तो पूछती हूँ कि भूखी हो ? क्या रोटी खा लोगी ?
उसने 'हाँ ' में सर हिलाया।
तुरंत नीचे जाकर दो रोटी सब्जी, मठरी, एक मीठे के साथ ले जाती हूँ और उसके हाथ में डिस्पोजेबल प्लेट पर परोसा खाना रख देती हूँ। फिर पूछती हूँ अम्मा, कहाँ से हो ?
बताती है, लखनऊ से।
क्या करती हो ? तो कहने लगी, ढोलक बनाती हूँ।
फिर सड़क किनारे बैठकर खाना खाने लगी।
मैं चलने लगती हूँ तो बोलती है कि कुछ पहनने के लिए साड़ी है? मैंने कहा, अच्छा रुको। कहकर एक सलवार कुर्ते का जोड़ा निकलती हूँ और दे आती हूँ। मैंने कहा, ख़ुद ही पहनना। सुनकर कहने लगी , क्या बात करती हो ? तुमसे मोहब्बत हो गयी है । भला किसी और को क्यों दू ।
उसकी बातों पर मुझे हँसी आ गयी मैंने पुछा, क्या मैं तुम्हारी फ़ोटो खींच सकती हूँ ? तुरंत दुपट्टे से अपने सर को ढाँकती है और कहती है, "हाँ " और मैं तुरंत दो फ़ोटो खींच लेती हूँ ।
अपनी फ़ोटो को देखने के लिए मेरा मोबाइल माँगती है और उसका खिला चेहरा देख
मैं अंदर तक गुनगुना जाती हूँ।
आनेवाला पल जानेवाला है
हो सके तो इस में जिन्दगी बिता दो
पल जो ये जानेवाला है ...


- निवेदिता दिनकर