शनिवार, 25 मई 2013
बुधवार, 8 मई 2013
पीड़ा
कभी कोशिश भी न करना
छूने की तुम
कराह न उठे बेचारी
असहाय सी मारी मारी
शरीर को चीरती हुई
डरी सहमी सी
फूट न पड़े टीस कहीं
आह , वह प्रचंडता
दिया जो तुमने
कैसे मैंने मन ही मन
रोक अंतर्मन
अपने को सम्हाला
नारंगी सी ज्वाला
जो भीतर घर कर चुकी थी
आहिस्ता आहिस्ता
अपने रुख की ओर .....
परत दर परत
दबी हुई सिसकियाँ
निस्तब्ध खामोशियाँ
जाने कितनी आहे
लिपटी हुई
मजबूती से
जलती रही ,
जलती रही .......
- निवेदिता दिनकर
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