शुक्रवार, 11 अक्टूबर 2013

तुम्हारे प्रेम में ऐसो पगी

सुनहले रौशनी सी, 
चमकीली हंसी … 
आकुल मन, 
उन्मुक्त ख़ुशी,
उष्णता भरी, 
गुलाब की …. 
तुम्हारे प्रेम में ऐसो पगी, 
रत्न जड़ी हीरा सी …

दमकती काया, 
कोई तराना … 
थाह नहीं, 
मान खज़ाना, 
ऐश्वर्य शाली, 
हर डाली … 
तुम्हारे प्रेम में ऐसो पगी, 
अमृत जड़ी शीरा सी … 

सुध बुध खोकर, 
अपनी गंध … 
ठगी ठगी सी, 
तापसी बन, 
नव पल्लव,
करू कलरव …. 
तुम्हारे प्रेम में ऐसो पगी,
आह्लाद जड़ी मीरा सी … 

तुम्हारे प्रेम में ऐसो पगी
आह्लाद जड़ी मीरा सी … 


निवेदिता दिनकर