ऐ मौसम ,
तु  खूब बिगड़ 
सर्दी तु,  और बढ़ 
ओले गिरे,
घिरे रात 
या फिर झमाझम बरसात ।
चाहे रख तु खुले किवाड़, 
हो रौशनी या अन्धकार 
धुप खिले, 
या लू चले 
मन में अब नहीं कोई बात 
लेके चले हम कई सौगात ।
यादो के नाज़ुक मोड़ पर 
हमारे दरमियान 
क़तरा  क़तरा 
मंद मंद 
आत्मीयता 
मनुष्यत्व 
हिला के अंतर्मन 
ले लिया जब रुखसत
तब जाना 
क्या होता  कुदरती दर्शन ।
तब जाना 
क्या होता  कुदरती दर्शन ।।
- निवेदिता दिनकर 







