गुरुवार, 19 नवंबर 2020

विश्व पुरुष दिवस!!




 ऐसे उन स्त्रियों को भी विश्व पुरुष दिवस की बधाइयाँ एवं मुबारकबाद जो किसी भी पुरुष रूप पिता, भाई, पति, पुत्र, प्रियतम, के साथ अटल खड़ीं हैं ।

और उन खास स्त्रियों को इस उपलक्ष्य में जादू की झप्पी जो इस मिथ्या को हटाने में सक्षम रहीं और हैं कि पुरुष ही कमाऊ और उनके रहते या न रहते कि बेचारी घर कैसे संभालेगी तो ऐसी नाजुक अबलाऐं ताबड़तोड़, बेधड़क घनघोर घर, बाहर संभाल रहीं हैं ।
ऐसे उन पुरूषों को भी विश्व पुरुष दिवस की अशेष शुभकामनायें जिनको ऐसे पोस्ट लुभाते नहीं और वे अपनी पूरी शिद्दत से स्त्रियों की इज्जत करतें हैं जो उनकी माँ, बहन, बेटी, बीवी, प्रियतमा भी नहीं हैं ।
खास तौर पर उन पुरूषों को विशेष प्रणाम जो धर्म, जाति के ऊपर जाकर मनुष्यता अर्थ का ख्याल रखतें हैं ।
बाकी दोस्तों , उनकों तहे दिल से आभार जो न पढ़ें लिखें है और न ही हम जैसे प्रीवीलेज्ड एवं इस वक्त मेरे साथ गाड़ी में चल रहें हैं जो दो सरल सहज पुरुष हैं। सुनसान यमुना एक्सप्रेस वे पर, बाहर घुप्प अंधेरा है , जिनका मजहब भी अलग, जिनसे सिर्फ इंसानियत का रिश्ता है, के साथ बेखौफ़ सफर कर रही हूँ ।

आगरा टाॅल प्लाजा आ गया है ...

ह्रदय से धन्यवाद ।
- निवेदिता दिनकर
19/11/2020

बुधवार, 11 नवंबर 2020

यात्रा ... !!





 प्रेम गीतों में समुद्र किनारें याद आने लगते हैं ...

डूबता सूरज ...
हाथों में हाथ डाले वह सत्तर वर्षीय दंपत्ति
जो चुपचाप समुद्र के हिलोरों और गर्जनों को सुन रहा है ...

नवंबर की हलकी गुदगदी सर्दी
और केतली से निकलता भाप ...
वह चाय वाला क्या सोच रहा होगा
चाय छानते वक़्त ... ?

सोचते सोचते पहुँच जाती हूँ
दबे पॉंव उसके घर
जहाँ उसकी पत्नी चुपचाप चौका बुहार रही है ...
क्या यह प्रेमगीत माना जा सकता है ... !!

आर्किड के पौध में दम भरने के लिए
तेज़ सिंह माली
केले के छिलके, सूखे पत्ते , कोयले का बुरादा मिलाकर
मिटटी के गमले को भरते हुए
को देखना
प्रेम की चरम अवस्था भी हो सकती है,
शायद ...

तैंतीस साल पहले खो चुके प्रियतम को
उसके जन्मदिन पर
उसकी पसंदीदा कविता कुब्ला ख़ान
को पढ़ कर खिलखिला उठना
को
प्रेम का ब्रह्माण्ड ... !!


मेरे यात्रा में हौले से पड़ते
यह मुलायम दाने
मुझे ज़रूर
थोड़े और दिन बचाकर रखेंगे ...

- निवेदिता दिनकर
१०/११/२०२०

कुब्ला ख़ान Kubla Khan: A poem By Samuel Taylor Coleridge
तस्वीर सौंदर्य : मेरे बागान से 'पाम' 

गुरुवार, 23 अप्रैल 2020

कहीं कोई दिल ...


बड़े बड़े मॉल ,
बेल्जियम ग्लास से सजा शोरूम ,अल्ट्रा मॉडर्न लाइट्स ...
पाँव फिसलाते इतालवी फर्श ...
शोकेस पर लम्बे लम्बे सिल्कन गाउन पहनी गोरी मखमली बालाएं ...
कि छू लेने से कहीं मैली न हो जायें |
सो रहीं है , चुपचाप ...
अभी तक ...
चकाचौंध बाज़ार में
यह क्या सुस्त , मुरझायीं रौनकें ?
पुल के नीचे बहती नदी ... प्राय निष्प्राण ...
नहीं, नहीं ...
मृत्यु हो चुकी थी ... बल्कि |
सड़के / फ्लाईओवर ... तमाम सुपर इंजीनियरिंग के वावजूद,
निस्तेज ...
इंतजार करतीं बसें , मायूस सीली सीटें ...
काल बैसाखी हवा के थपेड़ो से कुछ खिड़कियों की कांच रुदाली कर रहीं है ...
पटरियों पर खड़ी कतार बंध इंजिने /ट्रेनें ...
अंदर झूलते पर्दे कुर्सियां ...
उफ़ न जाने, आपस में क्या बात करते रहते ?
स्कूल /कालेज की आत्मा ... तो दीवारों से चिपक कर रो चुकी थीं ...
उतनी बार,
जितनी बार पृथ्वी पर झड़ कर गिरते पीलें पत्ते ...
फूलों की क्यारियाँ मौसम को रोक कर आ रहीं थीं ...
कि
अभी , जाना मत ...
बच्चे ...
बच्चें आते ही होंगे !!
ब्लैकबोर्ड पर लिखा हुआ अलजेब्रा का वह हल
इस बात का द्योतक
कि
कठिन समस्याओं का हल सरल हो जाता है।
- निवेदिता दिनकर
19/04/2020

बुधवार, 25 मार्च 2020

''कविता '' ... निकल गयी ...



नमस्ते !
नमस्ते !!
कहते हुए एक मीटर फासले से ...
निकल गयी ... कविता
''कविता '' ...
निकल गयी ...
और सीधे जाकर गुलाब पर मंडराने लगी ... वहाँ उसे कोई डर नहीं था |
तितली बन गयी थी कविता ...
गुलाब को लाल सुर्ख रंग में तब्दील होने में कलियों को जैसे कोई वक़्त ही नहीं लगा ...
मैंने गुलाब को मेरे ऊपर ठिठोली करते हुए देखा ...
गुलाब की ठसक
भी यों नहीं है ...
बगैर रोक टोक के वह खिला रह सकता है ...
कई कई रोज़
बहुत खुश है वह अपनी आज़ादी से ...
अंगूर के बेल पर जब चढ़ने लगी
कविता ...
मानों, यौवन की दहलीज़ पर पाँव पड़ गए हो ...
छोटे छोटे अनगिनत गुच्छोंसे सज गयी थी बेल ...
टिटहरी और गिलहरी
की जब्बर जुगलबंदी,
में
उनके आनंदमय आवाज़ एक थी ...
आराम से सड़क पार करते
कुछ भूरे सफ़ेद श्वानों का झुंड हँसते बतियाते ... बौरा गये है ...
आसमां को छूने की चाहत में
ऐसा खेल रच गया कि छुअन से ही दूरियाँ हो गयीं ...
नाकाबंदी
फाटक बंदी
शहर बंदी
से हम कब ?
क अ ब ?
बंदी बना दिये गये ... नहीं पता चला ...
खुशियों से तरबतर , नृत्य करते, भौचक्के,
पशु प्राण ... पाखी ...प्रकृति ...
कि उनकी दुनिया
अचानक
हिफाजत में कैसे है ?
पर क्या उनका हिंदुस्तान ...
अब हुआ है ...
आज़ाद ?
- निवेदिता दिनकर
२३/०३/२०२०
#कोरोनाकॉम्बैट #जागोकम्युनिटी

शुक्रवार, 31 जनवरी 2020

शहर में वसंत

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शहर में वसंत घुला हुआ है |
ऍफ़ एम् वाले गा कर
तो
अख़बार वाले शुभकामनायें पेश कर दुनिया को बता रहें है |
सोशल साइट भी आगे बढ़ चढ़ कर सरसों के खेत ,
आग यानि पलाश के कसीदें
और
माँ सरस्वती की वंदना से गुंजायमान को पेश करने की होड़ में
लाइक्स लव्स बटोर रहें हैं |
गली की नुक्कड़ पर
तीन औरतें
शाम काम से लौटती,
कौन किस तरीके से आज पिटीं ... पर हँसते हुए पायीं गयीं |
शहर में वसंत घनघोर घुला हुआ है ...
- निवेदिता दिनकर
  ३०/०१/२०२०

सोमवार, 27 जनवरी 2020

तु इस वक्त भी ...

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कभी तेरी ओढ़ी रजाई मुझे गर्माहट दे जाती है 
और 
जेठ की ऐंठन में पहुँचाती हैं ।
कभी तेरे उतारे जूते मुझे बताते हैं मीलों चले चाँद
और सुनाते हैं ढेरों ऐसे ढब बेढब शहर
जो तुने जूते के पैतावे में छुपा दिये हैं ।
पता चलने नहीं देगा
पर
तु इस वक्त भी तारों से आसमान लाने के लिए जुटा होगा ...
- निवेदिता दिनकर
  08/01/2020

चित्र : एक अकेला थकेला चाँद 

शुक्रवार, 17 जनवरी 2020

कमाल है ...



कमाल है,
यहाँ सब गद्दार है ।
एक पेड़ ने दूसरे पेड़ से कहा ...
कि कलम दवात खेल रहें हैं ... खूब
कि आज कल खेल चरमोत्कर्ष पर ...
तो क्या अब हमें यह गद्दार काटेंगे नहीं?
नहीं, अब आपस में ही काटम काट चल रहा है ...
पर इनके फ़ितरत की फिक्र है, बंधु !!
बाकमाल यह,
कभी भी किसी करवट बैठ सकतें हैं, बंधु !!!
- निवेदिता दिनकर

सोमवार, 6 जनवरी 2020

कम्बख्त हठी ...




कुछ बातों की हिस्सेदारी नहीं होती ,
बिलकुल दास्तानों की तरह ...
कश्मीरी कहवा हलक से उतरते ही मीठी हो चली।
बादाम का असर का आसार भी ...
हौले हौले मन के फ़िज़ा में कोई दस्तक देने लगा।
डल झील ...
शिकारा राग बिलावल में कोई गीत की तैयारी करता हुआ ...
सर्द बर्फ़ीली या सीली हवा ... चुभने लगी या चूमने ...
पता नहीं ...
दो जोड़ नंगे पैर या बर्फ की सिल्ली ,
धड़कनें स्पीड बोट ...
हाथ गरम चिमटा ...
क़ैद में केवल गरम साँसे |
फ़िजा बदलने लगी ...
कैफेटेरिया का स्टुअर्ड सामने मुस्कराता हुआ ,
उँगलियाँ कहवा में डूबी हुईं ...
सिज़ोफ्रेनिया दास्तानें कम्बख्त हठी बहुत होतीं हैं ...
- निवेदिता दिनकर
  ०२/०१/२०२०