आसमान में उड़ते उड़ते
बादलों के संग अठखेलियाँ करने लगी …
तब,
उधर से गुजरती एक चिड़िया बोली
अरे, तुम !!
मैंने कहा, हाँ …
आज मैं बहुत खुश हूँ।
अब
मैं बूंदो से दोस्ती करूंगी,
पुरवैया मेरी सहेली बन गई है,
अनजान रास्तों पर कूदूंगी फाँदूंगी …
अमरुद के पेड़ पर चढ़ अमरुद तोड़ूँगी,
झुकी टहनियों से लटकूँगी,
अमावस रात में चाँद ढूँढूँगी,
और
सदियों से जमी बर्फ बनकर पिघलूंगी …
- निवेदिता दिनकर
पेंटिंग : साभार गूगल
बहुत ही सुंदर कविता।
जवाब देंहटाएंउत्तम रचना
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