पत्थर को पूजने वाले,
पत्थर से आग पैदा करते करते,
पत्थर के हो गए ...
यकीं मानिये,
दौर यूँ चला यह
कि
बिन आँच के ही
स ब
झुलसते चले गए ... ...
- निवेदिता दिनकर
तस्वीर : मेरे द्वारा खींची दौर ऐ शाम की , लोकेशन : आगरा
पत्थर को पूजने वाले,
पत्थर से आग पैदा करते करते,
एक आला कथाकार, उपन्यासकार, बारीकी से रिश्तों को बुनने वाली शिवानी जी को
उनके जन्मदिवस व प्रत्येक दिवस पर मेरा प्रणाम |
यादों के काफ़िले में नायाब चीज़े ही हो , जरूरी नहीं ...
पर रेंगती ज़िन्दगी में बहार जरूर ले आती है ...
तुम्हारी हर मुद्रा को ठहर कर देखती हूँ ...
बस, तुमसे मिलने का इंतज़ार चाहिए या चाहिए एक आहट या आहट जैसा ... तो आज कमल यात्रा पर चलते हैं ...
नदी के किनारे एक बड़ा पीपल का पेड़ था |
उसके तने के छोटे छेद में चीची चींटी ने अपना घर बना रखा था | वह उसमे बड़े आराम से रहती थी ...
सड़क के दोनों तरफ हरियाली होती है तो सफर खुद ब खुद ख़ुदा हो जाता है |
चाँद भी दोपहर का बहाना कर छुप गया ...
इलज़ाम है
हम बात करते करते
कई बार