चाँद, तुम थकना नहीं ...
फी फी कर हँसती हूँ, जब तब ...
देखो, क्या है कि हम फ़ितूरी लोग हैं
यह नाटक वाटक घोट कर पी चुके हैं, काफ़ी पहले
इश फिश करके तुम कुछ देर बात कर भी लोगे तो क्या..!!
अभी कई बार आओगे जाओगे ...
जैसे आती जाती हूँ,
मैं ...
बनारस !!
क्योंकि ठहरने का रिवाज़ नहीं है ...
- निवेदिता दिनकर
०१/१२/२०२०
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