हर रात एक कहानी बुनती हूँ
या
हर कहानी में एक रात बुनती हूँ
मगर,
आज की रात
एक सर्द रात
निस्तब्ध
सफ़ेद
अकेली ...
अधूरी ...
अलबेली ...
अनोखी ...
अलौकिक ...
हल्कू, जबरा
आज भी वैसे ही,
बिलकुल भी नहीं बदले ...
कुछ नहीं बदला ...
- निवेदिता दिनकर
04/01/2017
तस्वीर : मेरे द्वारा "पूस की अलौकिक रात", लोकेशन : आगरा
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