आज 'सरस्वती पूजो' बचपन वाली याद करने का मन हो रहा है। यह ख़ास दिन इसलिए खास और थी क्योंकि 'इस दिन पढ़ना नहीं होता था।' यह हम नहीं कह रहे बल्कि ऐसा ही है और जो इस दिन किताब छूता है, सब भूल जाता है। और भूलना कौन चाहेगा, भला … इसलिए ऐसी परंपरा का निर्बहन करना जरूरी है।
दूसरी ख़ास बात कि हम लड़कियों को साड़ी कंपल्सरी पहनना होता था पुष्पांजलि देने के लिए। फिर खिचड़ी भोग बतौर प्रसाद।
क्या दिन थे , আমি সত্যিই বলছি …
आज घर में माँ सरस्वती की अर्चना और केसरिया खीर का प्रसाद अर्पण किया गया ।
"वाणी "
शील लिए शीरीं सी वाणी,
रहे अविरल यह सुमिरनी।
निवेदन मेरा ऐ वाग्देवी,
कर शीर्ष इसे देववाणी॥
- निवेदिता दिनकर
फोटो क्रेडिट्स - उर्वशी दिनकर 'सरस्वती पूजा' , लोकेशन पूजा घर
सार्थक प्रस्तुति।
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (26-01-2015) को "गणतन्त्र पर्व" (चर्चा-1870) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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गणतन्त्रदिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत ही सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति, गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाये।
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