चाय की चुस्कियों में
और
महफ़िलों की चुप्पियों में ठहरे रह जाते हैं।
और
महफ़िलों की चुप्पियों में ठहरे रह जाते हैं।
वे घास पर पड़े बारिश के
वह
बूढ़े बूँद है
जो धूप निकलने पर भी ठहरे मिलते है।
वह
बूढ़े बूँद है
जो धूप निकलने पर भी ठहरे मिलते है।
तकिये पर पड़े तेल के निकम्मे निशान कभी भी जा पाएं?
और
कंप्यूटर टेबल
पर
बेतरतीब आड़े तिरछे लहराते डिटेल्स
शिराओं में सिरिंज का काम करते हैं।
और
कंप्यूटर टेबल
पर
बेतरतीब आड़े तिरछे लहराते डिटेल्स
शिराओं में सिरिंज का काम करते हैं।
कुछ लोग कुहूकते रहें...
कुछ लोग कभी न जाए... -
कुछ लोग कभी न जाए... -
- निवेदिता दिनकर
फोटो क्रेडिट्स : दिनकर सक्सेना , लोकेशन: लेह
बेहतरीन भाव लिए सुंदर रचना हेतु अनन्त शुभकामनाएं ।
जवाब देंहटाएंआदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' ०३ सितंबर २०१८ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
जवाब देंहटाएंटीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।
आवश्यक सूचना : रचनाएं लिंक करने का उद्देश्य रचनाकार की मौलिकता का हनन करना कदापि नहीं हैं बल्कि उसके ब्लॉग तक साहित्य प्रेमियों को निर्बाध पहुँचाना है ताकि उक्त लेखक और उसकी रचनाधर्मिता से पाठक स्वयं परिचित हो सके, यही हमारा प्रयास है। यह कोई व्यवसायिक कार्य नहीं है बल्कि साहित्य के प्रति हमारा समर्पण है। सादर 'एकलव्य'