बहुत खूबसूरत थी | भूरी भूरी आँखें , काँधो पर गिरते मुलायम चमकीले बाल | पढ़ने लिखने में भी सबसे अव्वल, पर थी एकदम भोली |
आजकल की लड़कियों के लिए बोला जाता है कि बड़ी चालाक होती है और उनको कम नहीं समझना चाहिए | 'मिष्टी ' सचमुच में मिष्टी थी | एक दम रोसोगोल्ला | कोई चतुराई नहीं |
एक अच्छे पब्लिक स्कूल से बारहवीं और बोर्ड में ९७% मिलना कोई आसान तो नहीं | कानपुर से सीधे दिल्ली यूनिवर्सिटी के लिए रवाना और सबसे नामचीन कॉलेज में दाखिला |
बहुत खुश थी, मिष्टी | सोशियोलॉजी ऑनर्स मिल गया था बल्कि जहां ही मिल गया था | आई ए एस की तैयारी के लिए परफेक्ट सब्जेक्ट | नया कॉलेज, नए दोस्त , सब कुछ अच्छा अच्छा | इस दिन के लिए तो वह कब से शारीरिक और मानसिक यतन ले रही थी |
एक बार एक पार्टी में जाना हुआ और वहाँ मिष्टी के साथ 'ऐसा' हो गया कि वह अपने में घुटने लगी | धीरे धीरे वह बिलकुल चुप होती गयी | एकदम खामोश | छुप छुप कर रोती | मगर अपने दोस्तों के सामने बिल्कुल सहज जैसे कुछ भी न हुआ हो |
मिष्टी को समझ नहीं आ रहा था अपनी बात किससे साँझा करे ?
घर में एक दीदी है मगर डरती है कि कैसे बताये ? माँ को तो बिलकुल भी नहीं |
उसे एक दोस्त याद आया जिसे वह कानपुर से जानती थी | अपने साथ हुए हादसे को उस दोस्त को बताना उचित समझा | बड़ी ही मुश्किल से मिष्टी बता पाती है कि एक पार्टी में कोल्ड ड्रिंक्स में कुछ नशीली गोलियाँ डालकर उसे पिला दिया गया था और फिर उसके साथ गलत काम हुआ | बहुत झिझकते , घबराते हुए कह पाती है, उसका रेप हुआ है |
मिष्टी अपने दोस्त को बताती है कि उसे समझ नहीं आ रहा है अब वह क्या करे? वह इस बात को भूलना तो चाहती है पर उसे गिल्टी महसूस हो रहा है | उसे अपने से नफरत हो रही है |
उसके दोस्त ने बड़े ही पेशेंस के साथ उसकी बात सुनी | उसने कहा कि ' तुम्हारे साथ बहुत बुरा हुआ है लेकिन मैं तुम्हारी कोई मदद नहीं कर पाऊँगा ' | मिष्टी ने पूछा कि ऐसा क्यों ?
तब उस दोस्त ने जो बताया मिष्टी के पैरों तले ज़मीन खिसक गयी | उस दोस्त ने बताया कि उसकी मानसिक स्थिति ठीक नहीं है और उसे जिंदगी से कोई लगाव नहीं है |
उसका रेप हो चुका है, चार बार | उसके माँ की ही सहेली ने उसका रेप किया है जब वह केवल १५ साल का था |
और यह बात उसके माँ को भी मालूम है |
मिष्टी सोचने लगी कि क्या पुरुषों का भी रेप हो सकता है ? क्या पुरुष भी सताये जाते है? पुरुष आखिर मदद के लिए कहाँ जाये?
दरवाज़ों के पीछें से चीख किसी की भी हो सकती है | टार्चर कोई भी हो सकता है | दर्द का कोई लिंग नहीं होता|
- निवेदिता दिनकर
15/01/2018
तस्वीर : मेरे क़ैमरे से , एक पुरानी हवेली का पुराना दरवाज़ा , लोकेशन : आगरा
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (16-01-2018) को "सारे भोंपू बेंच दे, यदि यह हिंदुस्तान" (चर्चामंच 2850) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
स्तब्ध रह गया इस डायरी को पढ़ के ...
जवाब देंहटाएंकितना कुछ घटित होता है समाज में ... मौन हूँ ...
जी, हैरान कर देने वाली घटनाएँ|
हटाएंशुक्रिया पोस्ट तक आने के लिए, दिगम्बर जी