"क्या तु समझती नहीं 
कि 
मैं तुझे पसंद नहीं करता, 
जानकर तेरे से बात नहीं करता, 
दिन रात अवहेलना करता हूँ ..."
अथाह  दर्द, सूखी आँखों से रिसते आँसू जो भाप बन चुकी है 
और शून्यता में झूलती  
औरत, बीवी , माँ 
बस सहनशीलता की पुजारी,
अपनी चींखों को खुद सुनने का भी नहीं कर सकती दुस्साहस … 
सुबकना मत 
बस 
तड़प, थोड़ा और तड़प, थोड़ा सा और  … 
फिर यह आदत में तब्दील। 
मैं नकारा,
बददिमाग,
आलसी,
औरत पर शारीरिक मानसिक अत्याचार करने वाला  
पर 
पुरुष … 
समझी !!
यह कहकर उसने मेरा सिर बार बार दीवार पर दे मारा … 
- निवेदिता दिनकर 
   05 /06 /2015 

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (06-06-2015) को "विश्व पर्यावरण दिवस" (चर्चा अंक-1998) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
विश्व पर्यावरण दिवस की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
एक अलग सी कविता
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ...
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