सागर,
तेज ज्वार,
ऊँची सिलवटदार लहरें,
खींच ले चली …
…मगर तुम्हारे आगोश की तृप्त सुलगन।
तेज ज्वार,
ऊँची सिलवटदार लहरें,
खींच ले चली …
…मगर तुम्हारे आगोश की तृप्त सुलगन।
रेलवे स्टेशन,
जबरदस्त जन सैलाब,
भेदती आँखे …
डसते चेहरें,
… तुम्हारे आँखों का अटूट आलिंगन।
जबरदस्त जन सैलाब,
भेदती आँखे …
डसते चेहरें,
… तुम्हारे आँखों का अटूट आलिंगन।
अस्तित्व की आपाधापी,
शरीर यात्रा
आत्म बलि ,
चहुंओर कश्मकश …
…पर तुम्हारे ह्रदय का अविराम स्पंदन।
शरीर यात्रा
आत्म बलि ,
चहुंओर कश्मकश …
…पर तुम्हारे ह्रदय का अविराम स्पंदन।
री झरने की सी झर झर …
इतराती
बलखाती
डोलती
मदमस्त
बेरपरवाह
… और तुम्हारे एहसासो का रौशन पुनर्जन्म।
इतराती
बलखाती
डोलती
मदमस्त
बेरपरवाह
… और तुम्हारे एहसासो का रौशन पुनर्जन्म।
जानती थी …
तुम सम्हाल लोगे॥
तुम सम्हाल लोगे॥
- निवेदिता दिनकर
आज की तस्वीर मेरी आँखों से …"हम तुम "
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