मेरी तसल्ली के लिए ही सही
मगर
तुम चुप्पी तोड़ डालो।
कितनी कही अनकही बातें
और
कितने छूते अछूते पल।
मालूम ही नहीं चला,
जब तुम पास थे…
और
और
यह जानते हुए
भी
कि
जोड़ना, घटाना, गुणा, भाग
केवल अंकगणित के अन्तर्गत ही नहीं
बल्कि
रहस्यमयी प्रक्रियाएँ है।
फिर भी,
यूँ ही गंवाते चले गए …
- निवेदिता
दिनकर
नोट : उपरोक्त पेंटिंग रविंद्रनाथ टैगोर द्वारा बनाई गई है |
ati sundar bhav
जवाब देंहटाएंThank you, Dr Sandhya Tiwari Ji... great to see you on my post!!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ..
जवाब देंहटाएंनीरज जी, तहे दिल से आभार॥
हटाएंबहुत सुन्दर रचना है, शब्द और भाव का संयोजन सुन्दर लगा !
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