शुक्रवार, 13 जून 2014

आँधी


आँधी के साथ एक जूनून, नहीं शायद एक मिटटी का एहसास, कह रही हो 
सब एक दिन धूल हो जाना है । 
मैंने कहा, ऐसे कैसे ?
अभी अंदर की "आँधी" का आना बाक़ी है, दोस्त॥


- निवेदिता दिनकर

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