सुनहरा एहसास .....पल पल की ....धडकनों से गुजरती हुई स्याही तक का सफ़र ....
शुक्रवार, 13 जून 2014
आँधी
आँधी के साथ एक जूनून, नहीं शायद एक मिटटी का एहसास, कह रही हो सब एक दिन धूल हो जाना है । मैंने कहा, ऐसे कैसे ? अभी अंदर की "आँधी" का आना बाक़ी है, दोस्त॥ - निवेदिता दिनकर
शास्त्री जी, नमस्कार!
जवाब देंहटाएंआपको अच्छी लगी, जानकर हर्ष हुआ। हमारा शुक्रिया स्वीकारें।
निवेदिता दिनकर
सुंदर पंक्तियाँ
जवाब देंहटाएंउम्दा प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंbahut hi sundar rachna..
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