मन द्रवित हो रहा है, जबसे बच्चियों के बारे में पढ़ा है ...
देख माँ,
नहीं जाना चाहती मै …
तुझे छोड़ कर,
बहुत रोयेगी तु
यह जानकर,
बिन मेरी गलती पर,
मुझे यह सज़ा दिये जाने पर …
बहुत रोयेगी तु
यह जानकर,
देख माँ,
बहुत दर्द हो रहा है न,
तुझे छोड़ कर,
मैं भी बहुत रोयी हूँ
यह जानकर,
मगर माँ,
तु अब एक काम कर,
मेरा जाना न ज़ाया कर,
एक एक को पकड़,
उनके किये की सज़ा देकर,
ही बैठना तु …
यह जानकर …
उनके किये की सज़ा देकर,
ही बैठना तु …
यह जानकर …
- निवेदिता दिनकर
देख माँ,
नहीं जाना चाहती मै …
तुझे छोड़ कर,
बहुत रोयेगी तु
यह जानकर,
बिन मेरी गलती पर,
मुझे यह सज़ा दिये जाने पर …
बहुत रोयेगी तु
यह जानकर,
देख माँ,
बहुत दर्द हो रहा है न,
तुझे छोड़ कर,
मैं भी बहुत रोयी हूँ
यह जानकर,
मगर माँ,
तु अब एक काम कर,
मेरा जाना न ज़ाया कर,
एक एक को पकड़,
उनके किये की सज़ा देकर,
ही बैठना तु …
यह जानकर …
उनके किये की सज़ा देकर,
ही बैठना तु …
यह जानकर …
- निवेदिता दिनकर
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस' प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (07-06-2014) को ""लेखक बेचारा क्या करे?" (चर्चा मंच-1636) पर भी होगी!
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
डा रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' जी ,
जवाब देंहटाएंसादर धन्यवाद, आपको रचना अच्छी लगी, जानकर ख़ुशी हुई!
आभार॥
सोचने को मजबूर करती है आपकी यह रचना ! सादर !
जवाब देंहटाएंकविता पसंद आने के लिए शुक्रिया।
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