शुक्रवार, 26 अप्रैल 2013

छोटी सी कली






आज से कुछ समय पहले ..... आज ही के दिन ......मेरे घर एक पुत्री रत्ना का आगमन हुआ 
उसके लिए एक नन्हा सा शब्दों का गुलदस्ता ...  



छोटी सी कली, छोटी सी कली
नाज़ नखरों में पली 
खुशियों की ऐसी डली 
कभी इधर चली , कभी उधर चली 
खिली खिली 
छोटी सी कली .....

जब से आई है ज़िन्दगी 
अनुभूति की पराग है ज़िन्दगी 
कभी मस्ती की बौछार 
कभी शीतल सी बयार
नरम नरम बातें 
हमेशा दिल को गरमाते 
खिली खिली 
छोटी सी कली .....

मन में तु ऐसी बसी 
कभी माँ सी , कभी सखी सी 
निर्मल सी , कोमल सी 
धवल सी , तरल सी 
गुदगुदाते एहसास सी 
छोटी सी कली
छोटी सी कली
खिली खिली 
छोटी सी कली ....

- निवेदिता दिनकर 

 

शनिवार, 13 अप्रैल 2013

न आने दू






न आने दू तुम पर कोई आंच 
चाहे हो कालनिशा सी रात 
हो  भभक भवजाल 
या फिर रुग्ण कराल 
कटाक्ष का  घाव 
या सांघातिक नियति 
वायदा ऐ लब का
समरभूमि सी आहुति । 

अहर्निश की बटोही 
तासीर इतना कि 
छलावा  या अकिंचनता
झंझावत या शठता 

विवशता या शत्रुता  
बनके सनाह 
रहो तुम भास्वरता 
आयुष्मान 
अयाचकता  ॥   

- निवेदिता दिनकर 

मंगलवार, 2 अप्रैल 2013

लज्जा आती है जब ...






कोख में बैठी हुई 
सपने संजोती हुई 
कोई पल मुस्कराती 
पता चलता है जब 
बाहर निकलने से पहले ही 
कफ़न की तैयारी है  
लज्जा आती है तब  ...

गर आ गई इस दुनिया 
मुख देखने से पहले ही 
भरोसा बनने की जगह 
दायित्व बन जाऊ जब 
कन्याधन की तैयारी है 
लज्जा आती है तब  ...

प्रतिदिन प्रतिस्पर्धा 
हर कोण बेरहम 
दिग्गजों के जुलूस में 
अवाक् हो जाऊ जब 
नौटंकी की तैयारी है 
लज्जा आती है तब  ...

व्रण भी खिन्न 
विस्मित निष्ठुरता 
लाचार मातम  
लोकरीति विलाप जब 
निर्निमेष की तैयारी है 
लज्जा आती है तब  ...


- निवेदिता दिनकर