शनिवार, 24 जनवरी 2015

सरस्वती पूजा


आज 'सरस्वती पूजो' बचपन वाली याद करने का मन हो रहा है। यह ख़ास दिन इसलिए खास और थी क्योंकि 'इस दिन पढ़ना नहीं होता था।' यह हम नहीं कह रहे बल्कि ऐसा ही है और जो इस दिन किताब छूता है, सब भूल जाता है। और भूलना कौन चाहेगा, भला  …  इसलिए ऐसी परंपरा का निर्बहन करना जरूरी है। 
दूसरी ख़ास बात कि हम लड़कियों को साड़ी कंपल्सरी पहनना होता था पुष्पांजलि देने के लिए। फिर खिचड़ी भोग बतौर प्रसाद।
क्या दिन थे , আমি সত্যিই বলছি …   
आज घर में माँ सरस्वती की अर्चना और केसरिया खीर का प्रसाद अर्पण किया गया ।  
"वाणी "
शील लिए शीरीं सी वाणी,
रहे अविरल यह सुमिरनी।   
निवेदन मेरा ऐ वाग्देवी,
कर शीर्ष  इसे देववाणी॥  

- निवेदिता दिनकर 
फोटो क्रेडिट्स - उर्वशी दिनकर 'सरस्वती पूजा' , लोकेशन पूजा घर 

गुरुवार, 22 जनवरी 2015

दो तोते




बेचैन सर्द हवा,
सीली सीली फ़िज़ा, 
गुफ्तगू करते 
चैन से 
दो तोते, 
एक उजड़ी शाख पर … 
और 
बेगाने से 
हम 
बहसो तमहीस के 
तिलस्म 
में 

 - निवेदिता दिनकर 
   २२/०१/२०१५ 
आज की तस्वीर मेरी आँखों से …"दो तोते" देख कुछ उमड़े ख्याल


रविवार, 18 जनवरी 2015

श्रद्धा सुमन




आज १८ जनवरी, श्री हरिवंशराय बच्चन जी की पुण्य तिथि पर श्रद्धा सुमन अर्पित 

प्रताप नारायण के प्रताप, माँ सरस्वती की विद्या, 
'मिट्टी का तन, मस्ती का मन, क्षण भर जीवन' सी सुसज्जा, 
छायावाद के कलाकार, मधुशाला के ताज।   
नाम हरिवंश राय बच्चन, है भारत के नाज़॥  

- निवेदिता दिनकर 
  १८/०१/२०१५ 

तस्वीर साभार गूगल 
 

गुरुवार, 15 जनवरी 2015

स्पर्श





एक अजीब सा रूहानी रूमानी एहसास।
दबी दबी ढकी ढकी।
सड़को पर चलते आहटों की आवाज़।
दूर जलती मद्धिम रौशनी। 
बारिश की बूंदो से 
उजली चमकती पत्तियाँ … 
और 

स्पर्श करते उष्ण हाथ।

- निवेदिता दिनकर 
 १४/०१/२०१५ 

तस्वीरों  को आज शाम क़ैद करते वक़्त मन को स्पर्श करते कुछ यूँ ख्याल  … 
लोकेशन - मेरे घर के सामने   


स्पर्श





एक अजीब सा रूहानी रूमानी एहसास।
दबी दबी ढकी ढकी।
सड़को पर चलते आहटों की आवाज़।
दूर जलती मद्धिम रौशनी। 
बारिश की बूंदो से 
उजली चमकती पत्तियाँ … 
और 

स्पर्श करते उष्ण हाथ।

- निवेदिता दिनकर 
 १४/०१/२०१५ 

तस्वीरों  को आज शाम क़ैद करते वक़्त मन को स्पर्श करते कुछ यूँ ख्याल  … 
लोकेशन - मेरे घर के सामने   


मंगलवार, 13 जनवरी 2015

लपट



सोचा कुछ लिखे,
हर कोई तो लिख रहा है।  
धत,
कोई शब्द 
आने को तैयार ही नहीं। 
इतना धधक रहा … 
सब कोयला कर दे रहा है।  
जैसे ही छूने की कोशिश किया,  
उंगली जला दिया …  
शब्द शब्द अंगार 
तेज लपट 
धू धू कर जल रहा … 

अब क्या ख़ाक लिखूँ !!

- निवेदिता दिनकर 
   १३/०१/२०१५   

फोटो क्रेडिट्स उर्वशी दिनकर , लोकेशन घर की छत , ३१ दिसम्बर २०१४ की रात, आगरा  
नोट : गौर से देखिए, फोटो में 'लपट ने एक औरत का रूप लिया है।' 

रविवार, 11 जनवरी 2015

सपनें


चूल्हों में जलती 
बैंगनी नारंगी रंग
और 
ऊपर पकती दाल 
सौंधी सी … 
भाव बहे जाये बदरंग 
और 
करवटें लेती सपनें 
औंधी सी … 

- निवेदिता दिनकर 

तस्वीर साभार गूगल