शुक्रवार, 9 जून 2023

नेशनल कैंसर सर्वाइवर्स डे 2023 - इच्छाशक्ति और जिंदादिली को सलाम




 National Cancer Survivors Day, Sunday, June 4, 2023, to honour those who are living with a history of cancer for their strength and courage...

प्रिय दोस्तों,
मुझे लगता है हम कुछ विषयों पर बात नहीं करते या करना चाहते भी नहीं, हश हश करते रह जाते हैं ...
आप इस वीडियो को सुनिएगा जरुर ...
आनंदित रहिए।

Happiness is truly Premium ... By saying, I want to salute my Maa, Mrs Ila Mandal, who is not only a milestone for every person suffering from Cancer but also a True Inspiration!! She is a rock solid persona knows to Celebrate Life by keeping intact her mental strength too!!! आधी अधूरी की फ़िराक में नहीं रहते, चाँदनी पाने रात रात भी नहीं जागते , जब मुठ्ठी में ही भर ली हो चाँद तब बेफिक्र के मौसम का इंतज़ार नहीं करते | - निवेदिता दिनकर

मंगलवार, 25 अप्रैल 2023

कादंबरी ...!!!

 कादंबरी ...!!!

''आज तेईस अप्रैल है।
दो दिन बीत चुके हैं , तुम्हें गये हुए।
सोच भी नहीं पा रहा हूँ, कि यथार्थ में ऐसा भी कुछ हुआ है। शरीर ढीला पड़ा हुआ है। अपने कमरे में बैठा हुआ हूँ, उसी कुर्सी पर। जब तुम छुप छुप कर पीछें खड़े होकर मुझे लिखा हुआ देखा करती थीं। अचानक तुम्हारे ख़ुश्बू से कमरा फिर भर गया है।
तुम्हारा स्पर्श मेरे पीठ से होते हुए मेरे गर्दन को जकड रहा है और मुझे यह जकड़न ... आह, मैं बैचैन हो रहा हूँ , नोतून बोउ ठान ''
'' मैं एक घोर में जी रहा हूँ''
''अपने आप से विद्रोह कर रहा हूँ कि, कि तुम चुपके से आकर मेरे कविता लिखे कागज़ो पर आड़े तिरछे लकीर खींच दोगी और मैं ... ''
कुछ ऐसा ही सोचा होगा , रवींद्रनाथ ने भी , कादंबरी की मृत्यु के बाद।
कादंबरी देवी इक्कीस अप्रैल १८८४ को चली गयीं थीं हमेशा हमेशा के लिए। रवीन्द्रनाथ टैगोर की प्रेरणा के साथ वे खुद रचनात्मक भी थीं।
मुझे कादंबरी देवी कब से मुग्ध करने लगीं, नहीं मालूम। रवीन्द्रनाथ टैगोर की लगभग हर कृति में वहीं तल्लीनता से बैठी मिलती है।
नमन कादंबरी ...
अनुलेख: कादंबरी को गाढे महसूसते हुए बेमौसम गाढ़े गुलाबी डेहलिया, हाॅलीहाक्स, कागज फूल (वूगनवेलिया) इस अप्रेल में, जब मौसम इन फूलों की इजाजत नहीं देता ...
पर मौसम में भी मौजूद हो मन की तड़प, कसक और कसकर आलिंगनबद्ध करने की झक्...!!!

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सोमवार, 10 अप्रैल 2023

हॉलीहॉक महसूस करना एक समाधि में प्रवेश करने जैसा है ...









हॉलीहॉक महसूस करना एक समाधि में प्रवेश करने जैसा है ...

मैं जनवरी से इस फूल के विशेष रूप से अपने छत के बगीचे में बढ़ने का इंतजार करती हूं और गिनती करती हूं ... एक दो तीन ... दिन फिर सप्ताह फिर महीने और अंत में उन्हें खिलते देखने के लिए ... इंच दर इंच फुट दर फुट...
अनंत खिलते देखने के लिए...
यही चरम है!
यही परमानंद है !!
यही असाधारण है!!!
यही असाधारण प्रेम लीला है !!!!
Feeling Hollyhocks is like entering into a trance ...
I wait for this flower to grow specially in my terrace garden from January and count ... one two three ...days then weeks then months & finally to see them blossom ... inch by inch foot by foot ...
to watch the eternal bloom ...
This is Zenith!
This is Ecstasy!!
This is Paranormal!!!
This is Paranormal Romance!!!!
07/04/2023

गुरुवार, 6 अप्रैल 2023

'' मात्र मात्राओं का खेल है '' प्रतिष्ठित कवयित्री अनीता निहलानी जी की समीक्षा





 ‘’कई बार मैंने मृत्यु को पास बिठाकर ज़िंदगी की सैर की है’’ - निवेदिता दिनकर

जीवन और मृत्यु के मर्म को जानने और गहन चिंतन और मनन के बाद उसे अपनी कविताओं में पिरोने का प्रयत्न करने वाली निवेदिता दिनकर एक प्रतिभावान कवयित्री हैं। इसका प्रमाण है उनका नया कविता संग्रह - ‘मात्र मात्राओं का खेल है’ जिसमें लगभग पचास कविताएँ हैं। पुस्तक का मुखपृष्ठ और कलेवर आकर्षक है तथा छपाई सुंदर है। सबसे पहले उन्हें तथा उनकी सुपुत्री को इसके लिए बधाई !
अमेजन से मँगवायी यह पुस्तक मुझे कल ही प्राप्त हुई, जैसे-जैसे कवितायें पढ़ रही हूँ, इनके बारे में कुछ लिखने की प्रेरणा सहज ही जग रही है। जीवन के विभिन्न रंगों की छटा बिखेरती ये कविताएँ कभी सुकून से भर देती हैं तो कभी कुछ सोचने पर विवश कर देती हैं।
कुछ कविताओं में बचपन बार-बार झलक आता है। दादू-दादी, नाना-नानी से सुनी कहानियाँ और झिझकते हुए पुत्री का पिता को कहना कि माँ से ज़्यादा प्रेम करने पर भी उन्हें कभी जताया नहीं, दिल को छू जाता है। बंगाल के आंचलिक जनजीवन का चित्रण करती कुछ बहुत ही सुंदर कविताएँ हैं, जैसे - बंगाल का जन जीवन और आलू झींगे पोस्ते
कई कविताएँ स्त्री विमर्श की पड़ताल करती प्रतीत होती हैं। नारियों पर हो रहे अत्याचारों को मात्र कुछ ही शब्दों में व्यक्त कर कवयित्री पाठक के मानस को झकझोर देती है । संग्रह की पहली कविता विषय रहित स्त्री विमर्श की एक सशक्त रचना है, तीन औरतें, आखेट को भी इस श्रेणी में रखा जा सकता है। कुरीतियों, अन्याय और अत्याचार के ख़िलाफ़ उठती उनकी कलम लिंचिंग और बलात्कार जैसे नासूर तथा धर्म के नाम पर हो रही हिंसा के प्रति जन मानस को सचेत करती लगती है। एक सशक्त कविता पुरुष का पौरुष में पुरुषों के प्रति होती नाइंसाफ़ी की बात भी रखी गयी है।
समाज में राजनीति की बढ़ती दख़लअंदाजी पर भी उनकी पैनी नज़र पड़ी है। इल्ज़ाम, पत्रकारिता शीर्षक की कविताओं में इसे देखा जा सकता है। ग़रीबी और अशिक्षा का दंश झेलते बच्चे, कोरोना काल में महानगरों से पैदल लौटते मज़दूरों की व्यथा कथा को भी अभिव्यक्ति का विषय बनाया गया है।
रिश्तों की ऊहापोह और एकतरफ़ा प्रेम की नशीली मदहोशी भी कविताओं का विषय बनी है । किस्से छलते हैं, पैटर्न, महिसा अमिनी, अंजाम और ख़ारिज इसका उदाहरण हैं। बैंगनी आसमान की यह पंक्ति छू जाती है - दर्द से बचने के लिए माँ के आँचल को उँगली में मरोड़कर छोड़ना ही एक मात्र उपाय है। अब कुर्सी में कविता में एक बहू के जज़्बातों को बखूबी संजोया गया है जो ससुर की मृत्यु के बाद उनकी कमी महसूस करती है। कुछ कविताएँ अपने भीतर एक से अधिक कहानियाँ समेटे हैं। शिमला ! कई गुलाबों का मौसम ऐसी ही कविता है। कहा जा सकता है कि जीवन के हर रंग को यहाँ समेटने का उपक्रम सहज ही दिखाई देता है। इनके अलावा भी अनेक ऐसी कविताएँ हैं जो पाठक के हृदय को किसी न किसी रूप में आंदोलित करती हैं; तथा अपने आस-पास हो रही घटनाओं और दृश्यों के प्रति एक विस्मय और कौतूहल का भाव जगाती हैं।

किताब ''मात्र मात्राओं का खेल है '' पाने के लिए आर्डर करें |
नोशन प्रेस का लिंक इस प्रकार है:


शुक्रवार, 31 मार्च 2023

'मात्र मात्राओं का खेल है ... कवि, अनुवादक, संगीतकार, गायक अमृत खरे द्वारा समीक्षा


 

कवि अनुवादक संगीतकार गायक अमृत खरे साहित्य के क्षेत्र में अजेय शिलालेख हैं जिनपर विभिन्न रंगों और रुपों का  कलेवर है | 

भारत में पहली बार किसी कवि ने वेदमंत्रों का हिंदी में काव्यात्मक अनुवाद का बीड़ा उठाया | यूँ तो श्री खरे विज्ञान के विद्यार्थी रहे हैं , फिर भी संस्कृत का इतना ज्ञान और अनुवाद की क्षमता एक विलक्षण प्रतिभा की पुष्टि है | अमृत फ़िल्म्स नाम से  उनका एक यूट्यूब चैनल भी है |

नोशन प्रेस द्वारा प्रकाशित नवीन  काव्य संग्रह ''मात्र मात्राओं का खेल है '' पुस्तक पर श्री अमृत ख़रे  द्वारा प्रस्तुत निवेदिता दिनकर की कविताओं की पंक्तियों से सुन्दर समीक्षा का प्रस्फुटन हुआ है , आप सब दोस्तों के अवलोकनार्थ  :  

निवेदिता की अजन्मी कविताएं
कुछ कविताएं लिखी नहीं गईं
और कुछ कविताएं लिखी नहीं जा पाएंगी।
संवेदनाओं की यात्रा
होती है लौहपदगामिनी की यात्रा ।
जज़्बात नहीं निकलते शब्दों से हर बार ।
दर्द बताने के लिए माकूल शब्द है कोई ?
हर बार क्या पंक्तियां पूरी हो पाती हैं ?
मानसून के आने का नॉर्मल पैटर्न बदला है ।
रिश्ते की पेचीदगी आज तक सुलझ नहीं पाई ।
सिसकियां फेंक दीं कहां, पता नहीं !
क्या है कि
चोट नहीं पहुंचती देह पर
अरे रे,
सीधे पहुंचती है आत्मा पर
काट पूरा नहीं दिया जाता
अधकटा ही छोड़ दिया जाता है ।
यह निवेदिता दिनकर की अजन्मी कविताएं हैं
तिलस्मी कहानियों का जखीरा सोया हुआ है इनमें
एक आहट के इन्तज़ार में !
कुछ कविताएं लिखी नहीं गई हैं
और कुछ कविताएं लिखी भी नहीं जा पाएंगी !
( मात्र मात्राओं का खेल है , कविता संग्रह की अजन्मी कविताओं पर )
अमृत खरे

बुधवार, 29 मार्च 2023

मात्र मात्राओं का खेल है ...  एक वैज्ञानिक का नज़रिया ... समीक्षा १




 #मात्रमात्राओंकाखेलहै #निवेदिन 


कविता में विज्ञान और विज्ञान में कविता देखने वाले डॉ. विनोद तिवारी भौतिक विज्ञान के शोध कर्ता और काव्यालय https://kaavyaalaya.org/ के सम्पादक हैं जिन की ईमेल द्वारा भेजी चिट्ठी पढ़ने के बाद साँझा किये बिना नहीं रह सकी |

भौतिकी में शोध कार्य के लिये उन्हें प्राइड आफ इंडिया पुरस्कार, अमरीका सरकार का पदक, और लाइफ-टाइम-एचीवमेंट पुरस्कार मिल चुके हैं एवं कई बरसों से Boulder, Colorado; USA में रहते हैं |

निवेदिता का नगीना - एक अत्यंत उत्तम काव्य संग्रह

आप सबसे यह समाचार साझा करने में मुझे बहुत प्रसन्नता हो रही है कि अपने कुटुंब की प्रिय और कुशल कवयित्री निवेदिता दिनकर (Nivedita Dinkar) का अत्यंत उत्तम काव्य संग्रह " मात्र मात्रा का खेल" अभी हाल में ही नोशन प्रेस ने प्रकाशित किया है। इसके आवरण का चित्र संलग्न है।
इस पुस्तक की एक विशेषता यह है कि इस पर एक नज़र डालते ही कर मन के अंदर गहराई में कुछ "छू" जाता है। पुस्तक का नाम, उस का आवरण चित्र, चित्र में रंगों का सुन्दर समन्वय और उनमें निहित एक काव्यात्मक सन्देश, से मन तरंगित हो जाता है। चित्र की सादगी और भावनाओं की गहनता ऐसी है जिनसे पहली झलक में ही पुस्तक मोह लेती है। इसका आवरण चित्र ऐसा ही प्रभावकारी है। यह चित्र निवेदिता की बेटी उर्वशी ने बनाया है, जो अपनी माँ की तरह ही कुशल कलाकार लगती है।
पता नहीं उर्वशी या निवेदिता के मन में चित्र बनाते समय क्या भावना रही होगी। मेरे मन में चित्र देख कर जो तत्काल भावना उठी, वह लिख रहा हूँ। इसमें पांच फूलों को संभाले हुए एक मानवीय हाथ है। यह एक सशक्त प्रतीक है जो कितना कुछ कह जाता है। पांच की संख्या गणित में विशेष होती है। यह Fibonacci श्रृंखला की पांचवें क्रम पर पांचवी संख्या है (शून्य के बाद) जो स्वयं 5 के बराबर है । भारतीय दर्शन और काव्य में भी पांच की संख्या का विशेष महत्व है। जैसा तुलसी दास ने लिखा है, "क्षिति, जल, पावक , गगन , समीरा; पंच तत्व जे रचहिं शरीरा।" चित्र में पांच फूलों को जोड़ता हुआ एक मानवीय हाँथ है जिसकी 5 उंगलियां मानव शरीर के इन्ही पांच तत्वों का उल्लेख करता है। साथ ही "हाँथ" में यह सकारात्मक सन्देश है कि कर्म करना मनुष्य का धर्म है। इतने सुन्दर भाव और उसमें गणित और काव्य का इतना सुन्दर समन्वय। स्पष्ट है कि चित्रकार और गीतकार दोनों ही अपनी अपनी कला में प्रवीण हैं।
आवरण पर नमूने के रूप में एक कविता छपी है, उसी से पता लगता है कि पुस्तक की अन्य कविताएं कितनी गहन और सार्थक होगी । इस कुटुंब में हम सभी निवेदिता की कविताओं के काव्य कौशल से परिचित हैं। निवेदिता की कविताएं मौलिक होती हैं, और प्रत्येक कविता में एक विशेष भाव होता है । उनमें समाज की कुरीतियों के प्रति एक विद्रोह और एक सकारात्मक शिकायत होती है । उनमें पीड़ा झलकती है किन्तु पराजय नहीं । आवरण की यह कविता, निवेदिता की अन्य कविताओं से भी अलग है, और, मेरे विचार में, विशेषतम है। निवेदिता शब्द संयोजन और छवि चित्र में तो प्रवीण है ही । इन कलाओं की छटा इस नमूने में देखिए : समाज की संवेदनशीलता कम हो गई है - इसकी साफ सुथरी मगर पुरअसर शिकायत: "सिहरन तो किसी बात से नहीं होती" - यह इस युग की ट्रेजेडी है। यह छवि चित्रण देखिए: "कांच पर धूल जमती रहती है" यह एक विवश सत्य है जिस पर शायद कोई कुछ कर नहीं सकता । कांच का रूपक भी बहुत सार्थक है : कांच कमजोर लगता जो सरलता से टूट सकता है किन्तु जब व्यक्ति विवश होता है तो उस पर भी कुछ किया नहीं जा सकता । बस धूल जमते हुए देखते रहना पड़ता है । इस विवशता की पराकाष्ठा यह कि हमें सब स्वीकार करना पड़ता है । क्योंकि एक और विवशता है कि "आँखों पर पट्टियां बाँधी जाती हैं/रहेंगी।" लगता है हालात बदलेंगे भी नहीं; बदलेंगे कैसे जब हमे सिहरन ही नहीं होती । तब हमें सब स्वीकार करना पड़ता है । जब संवेदना की शक्ति ही समाप्त हो गई तो क्या कोई आशा शेष है? यह पूरी कविता का कथ्य है ।
अंत में निवेदिता का शब्द संयोजन और यमक अलंकार का मधुरतम उपयोग देखिए । समाज में परिवर्तन लाने के लिए सिर्फ "कविता" पर भरोसा हो सकता था । क्योंकि सुनते आए हैं कि "कविता परिवर्तन का कारक होती है"। किन्तु अब तो कविता भी "मात्र मात्राओं का खेल है ". "मात्र और मात्रा" । यह है इस नगीने के सौन्दर्य की चरम सीमा, कविता में कथ्य की क्लाइमैक्स।

बेटी उर्वशी और कवयित्री निवेदिता को ऐसे उत्तम काव्य संग्रह के लिए हम सबका प्यार और बधाई।
(प्रस्तुत कर्त्ता : विनोद तिवारी )

क़िताब मंगवाने हेतु लिंक 

https://notionpress.com/read/maatr-maatraon-ka-khel-hai
https://www.amazon.in/dp/B0BTMK7VPC?&tag=notionpcom-21
https://www.amazon.com/dp/B0BTMK7VPC
https://www.amazon.co.uk/dp/B0BTMK7VPC
https://www.flipkart.com/maatr-maatraon-ka-khel-hai/p/itmc6d2654825e9d?pid=9798889359456&affid=editornoti&affid=editornoti


रविवार, 26 मार्च 2023

मात्र मात्राओं का खेल है ...










 पहली बार हाथ में अपनी पुस्तक '' मात्र मात्राओं का खेल है '' को थामना  ... 

भावुक करा गया  ... समझ ही नहीं आ रहा था कि उसमें मुझे देखना क्या है!! 
कवर, पृष्ठ, सज्जा , रचनाएं या ख़ुश्बू  ... 
पुस्तक में लिखी रचनायें गत दो तीन बरस की है  ... पुस्तक का रूप धारण करने से पहले समय विचारों/ शब्दों/इंतज़ार ने बहुत गोता खाया/ लगवाया | 

आवरण बेटी उर्वशी दिनकर ने मधुबनी आर्ट्स के ज़रिये सजाया है | 

2020 से लेकर 2022 तक या यूँ तो अभी भी कई कठिन परीक्षाओं का सामना करना पड़ा या पड़ रहा है |  नतीजे की चिंता करने का कोई समय नहीं था , सो धड़ाधड़ इन्तेहां दिए जाती रही  ...  राहत की अब हमें फ़िक्र भी नहीं | 
दर्द को अब माशूका जो  बना लिया है  ... 
पुस्तक बनाने की प्रक्रिया बनते बनते छूटती रही , कई प्रकाशकों ने  न बोलना था, सो उनको माफ़ किया, कुछ माफ़ी अभी रस्ते में हैं ,  पर यात्रा कायम रही  ... 

२ जनवरी , २०२३ अनुराग वत्स जी से पहली बार बात हुई  ... 
जाने माने नोशन प्रेस के युवा संपादक से हुई छोटी सी बातचीत ने इतना ईंधन का काम किया कि  मात्र महीने भर में  ४१ रचनाओं सहित काव्य संग्रह  '' मात्र मात्राओं का खेल है '' हम सबके समक्ष  ... 
उनके एक और साथी आदर्श भूषण भी वाक पटु  ... यानि एडिटोरियल टीम ऑफ़ नोशन प्रेस रॉक्स  ... 

दोस्तों , कुछ तस्वीरें जो बेटी ने खींची है , यह क्षण भविष्य के ख़ातिर क़ैद किये  जाने जरूरी थे |
दुलार से मित्रों की अपनी भेजी हुई भी तस्वीरें हैं |  

#मात्र मात्राओं का खेल है   #निवेदिन  #नोशन प्रेस