सोमवार, 16 जून 2014

ज्यों ही


कुछ लिखने की तमन्ना लिए ज्यों ही बैठती, 
कोई न कोई जरूरी गैर जरूरी वजहों से आखिर लिख ही नहीं पाई …
कभी बाहर, आंधी के से आसार दिखे, 
तो,
कमरे सन्नाटों से भरे हुए …

- निवेदिता दिनकर

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