रविवार, 10 सितंबर 2017

हैल सितम्बर ...




सितम्बर शुरू हो गया है | 
कुछ सालों से सितम्बर पर ज्यादा ही ध्यान जाने लगा है | 
वैसे मेरी ज़िन्दगी के पहले नौ महीने (गर्भ ) से लेकर अब तक के सारे ग्रीष्म वर्षा शीत मंगल प्रदान करने वाली, मेरी शख्सियत सँवारनेवाली, महानों में महान आत्मा, मेरी "माँ " का जनम दिवस पड़ता है | २६ सितम्बर ... 

वैसे ' माँओं ' को कहाँ कब शब्द लकीरें थ्योरम चाँद तारें नाप पायें है ? विशेषण विशेषज्ञ तो बेचारे बस यूँ ही ख्याली बेख्याली हलवा पूरी पुलाव पकाते रहते है |  

मगर सितम्बर को और खूबसूरत, और पाक, और नमकीन बनाया एक और 'माँ ' ने, वह है "मेरी सासु माँ" | उनके जैसा कोई नहीं | जी, यह सच है | सारी कायनात एक ओर और मेरी सासु माँ एक ओर | जो कुछ दुनियादारी , नौकरी, आटे दाल का भाव , सीखा/ गुना, सब उन्हीं से | मेरी सहेली भी मेरी गार्डियन भी |        
उनका भी आगमन इसी सितम्बर में , २४ सितम्बर ... जनाब | 

वैसे तो इतना ही काफी था , हे सितम्बर | 

पर एक सितम हुआ, जब  २९ सितम्बर, २०११ में जब बेबात,  "बापी" ने इस विचित्र दुनिया से रुखसत लिया, तब सारी ज़िन्दगी का सार एक ही झटके में समझ में आ गया | 
एकदम दर्ज़ा बेटी से माँ का हो गया | यानि अब 'माँ ' बेटी बन गयी और माँ की "माँ " हम | 
जो बेटी "आदोरेर टॉकी"( टॉकी मेरा डाकनाम है ) "मामोनी " हुआ करती थी , आज/अब है माँ | 

मेरे बापी को बर्फी बहुत पसंद थी /है | तो उनके लिए बर्फी उनके नाम से अमूमन मंगवाती रहती  
हूँ | मगर चूँकि  बापी ने अपने जीवन के सारे कार्यकलाप रेलवेस को समर्पित किए और रेलवे ने उनको रखा बरेली
नामक जंक्शन में, सो, "बरेली के बर्फी " के मुरीद | पिक्चर नहीं , मिठाई | 
जी, सही पढ़ा, बरेली की बर्फी, एकदम खरी, बेबाक, स्वाद से भरी | 
काफ़ी कुछ मेरी तरह  ... 

कितने भी तू कर ले सितम 
हँस हँस के सहेंगे हम 
ये प्यार ना होगा कम 
सनम तेरी कसम ... 

पिक्चर अभी बाकी है , मेरे दोस्त ... 

- निवेदिता दिनकर 
   १० /०९ /२०१७ 
 
 तस्वीर : शादी के पचासवें सालगिरह में  बापी के साथ की आखिरी तस्वीर, २०११   

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