सोमवार, 25 सितंबर 2017

रईस







#रोडडायरीज

कल की बात है |
वैसे कोई ख़ास बात भी नहीं 
एकदम साधारण सी, समझ लीजिये ...   

महज बीस साल का, 
वह बालक 
कुछ भी, कैसा भी, कहीं भी काम करने को तैयार  

बस, दिहाड़ी मिल जाए  ... 

पूछा, कुछ पढ़े हो ?
उसने मेरी ओर देखा और चेहरे पर तिरछी मुस्कान तैर गई 

मैं समझ गयी. 'जवाब'...  

पूछा, नाम क्या है? 
एकदम तपाक से बोला ... मुसलमान हूँ | 
पूछा, तो?
नाम नहीं रखे जाते ?

अब थोड़ा सहज हुआ 
"रईस"

माहौल को थोड़ा हल्का करने के लिए पूछा , रईस फिल्म देखी ?
शाहरुख़ पसंद है ? पता है, कितना स्ट्रगल किया है?
रातों रात कोई चीज़ नहीं मिलती | मशक्कत करनी पड़ती है | 
"हाँ" में सर हिला देता है |   

कहता है, मम्मी और बड़े भाई सब्जी बेचते है | 
पापा एक्सपायर हो चुके है| 
घर की हालत अच्छी नहीं है  ... 

कोई बात नहीं, हर संडे मेरे पास दो घंटे आया करो 
बुक्स कॉपी की फ़िक्र मत करना। ... 

बड़े ऐटिटूड के साथ बोला , 'इतना तो है' | 

मैंने बोला, परफेक्ट ... 

फिर बोलता है, पापा अगर जिन्दा होते, माँ घर में रहती, तो मैं क्यों स्कूल नहीं जाता ?

सच ही तो है | 
लेकिन, उस जैसे  अनेक मुरझाऐ बच्चों में जान फूंकना है, सो लगी हूँ और लगी रहूँगी | 

- निवेदिता दिनकर  

तस्वीर : उर्वशी दिनकर 

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