कोई सूरत पसंद करे
या न करे,
अनदेखा करें ,
बातों का भूचाल बनाये,
बात बात पर नाक भौह सिकोड़े,
गया बीता साबित करे ,
रक्त रंजित …
कभी कभी
कभी कभी
अस्तित्व विहीन भी …
जैसे
कोख से पैदा न होकर,
कोई बेच गया था …
या
लहरतारा ताल से …
मगर
फिर भी,
फिर भी
कँटिले गुच्छो में जमे हुए है।
बिन थके पिले पड़े है।
क्योंकि अब
डर नहीं लगता,
सिहरन भी नहीं होती,
दर्द का दम जो घोंट दिया …
- निवेदिता दिनकर
०८/१२/२०१४
फोटो क्रेडिट्स - उर्वशी दिनकर
दर्द को दर्द ही समझें ...........
जवाब देंहटाएंएक सम्पूर्ण पोस्ट और रचना!
जवाब देंहटाएंयही विशे्षता तो आपकी अलग से पहचान बनाती है!
अद्भुत लेखन
जवाब देंहटाएंनिवेदिता : यह रचना मुझे कठिन लगी. पर अच्छी लगी..!! अच्छी कविता का स्वरूप लयपूर्ण संगीत की धुन जैसा होता है जो 'समज' की फ्रेम से परे प्रभावित करता है. मैं कभी नहीं चाहूँगा की यह कविता मुझे 'समजाई ' जाए... इस के वो हिस्से जो मुझ से दी कोड नही हो रहे उसे मैं खुद अपने भावविश्व से परखना बहेतर समज़ुंगा.. इसे ही पढ़ते है न कविता...?
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