कभी कभी ख़ुशी का कारण भी बनना, कितना सुखदायक होता है, न।
आज
फूटपाथ पर फेरी लगाकर बैठने वाले से जब मैंने ऊनी दस्ताने ख़रीदे या जब
पैसे देने की जगह उस पतले दुबले मुरझाये को खाना खिलवाया या जब संतरे वाले
के कहने मात्र पर जबरदस्ती संतरे खरीदे। .
वैसे कहीं कुछ ख़ास तो नहीं हुआ सिवाय उन लोगों के चेहरें की चमक को छोड़ कर।
ऐसी कड़ाके की सर्दी में गरम गुलाबजामुन सी गरमाहट बड़ी सोणी लगती है....
- निवेदिता दिनकर
25/12/2014
तस्वीर उर्वशी दिनकर के सौजन्य से क्रिसमस ट्री लोकेशन 'अपना घर'
आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (26.12.2014) को "जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि" (चर्चा अंक-1839)" पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, चर्चा मंच पर आपका स्वागत है।
जवाब देंहटाएंआपका बहुत शुक्रिया, राजेंद्र कुमार जी...
जवाब देंहटाएंसही कहा...कुड पल ऐसे भी जिए
जवाब देंहटाएंजिससे आत्मसंतुष्टि मिले उससे बढ़कर कोई ख़ुशी नहीं ..
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया प्रस्तुति