नौकुचियाताल, तुम बहुत खूबसूरत हो।
तुम्हारे आगोश में बिताये हमारे पल निहायत सुकून भरे थे। मैंने तुम्हे किसी ख़ास वजह से चुना और तुम मेरे सही मायनों में खासम ख़ास निकले। शांत झील से निकलती गुदगुदी एवं अठखेलियां खेलती यादें मुझे आज भी अपनी तरफ खीच रही है।
चारो तरफ पहाड़ियाँ हरियाली में नहाई हुई और शुरुआती सर्दी का गुलाबी जामा के बस कहने ही क्या।
जीने की चाह और बढ़ गई और वादा कि तुमसे मैं पिया संग फिर मिलने आउंगी …
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (22-12-2014) को "कौन सी दस्तक" (चर्चा-1835) पर भी होगी।
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुंदर चित्रों के साथ नौकुचिया ताल ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर चित्रमय प्रस्तुति...
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