सोमवार, 4 फ़रवरी 2019

लघुप्रेमकविता ७




उतरते उतरते धूप ने
मेरे भीगे केशों को देखा ...
सुखानेे आई थी
जब छत पर,
कि निर्लज्जता से वहीं टिक गया ।
" मेरे पास एक खूबसूरत देह भी है",
कह ही दिया ...
मैंने भी ।
बेचारा , मेरे आकर्षण से कैसे बचता ...

- निवेदिता दिनकर
  04/02/2019

तस्वीर : धीरे से उतरते, धूप की, मेरे छत पर ... लोकेशन : आगरा

3 टिप्‍पणियां:

  1. बेहतरीन शब्द जाल बुना है आपने। इतनी सारी बातें इतने कम अल्फाजों में! बहुत-बहुत शुभकामनायें आदरणीया निवेदिता जी।

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा आज मंगलवार (05-02-2019) को "अढ़सठ बसन्त" (चर्चा अंक-3238)
    पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. बहुत ख़ूब जादूगरी शब्दों की ...

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