निर्माण लगभग १३वीं शताब्दी ...
अवशेष देख बेहद रोमांचित हो गयी थी।
थोड़ी देर ठहरने पर,
इनके जीवाश्म से आवाज़े
कानों में गूंजने लगी ...
पत्थरों पर छोड़ी गई छापों से सब कुछ साफ़ साफ़ झलक जो रहा था।
अजीब आकर्षण सा होने लगा ...
उस माहौल की सीली सीली भभक भी मेरे अंदर धीरे धीरे घर करने लगी ...
रसोई से आती खाना पकने की खुशबू
या
शोर मचाते बच्चें
या
मंदिर से आती टन टन
या
दूर बावड़ी से छपाक की आवाज़ ...
आह ...
मैं गहरी निद्रा में जा चुकी थी ...
- निवेदिता दिनकर
१३/११/२०१८
तस्वीर : मेरे नज़रिये से
फिर रोमांचित कर गया, कुलधरा....आदरणीया निवेदिता जी।
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