हल्के मीठे मौसम की झपकी ,
धूप की ठिठोली कच्ची पक्की.
धूप की ठिठोली कच्ची पक्की.
मुई सौंधी बाताश के अधखुले अधर ,
मुलायम फुरफुरी आसमां का अगर मगर ,
मुलायम फुरफुरी आसमां का अगर मगर ,
झंकृत पानी के पाजेब ,
सकुचाते शरमाते धरणी कटिजेब ...
सकुचाते शरमाते धरणी कटिजेब ...
के सम्मिश्रण
के आँच
में
पकता है
में
पकता है
वसंत ...
आह वसंत ...
री वसंत ...
री वसंत ...
मुझे अपने में घोल ले ,
ऐ वसंत ...
ऐ वसंत ...
सुन ले, वसंत ...
- निवेदिता दिनकर
14/02/2019
तस्वीर : मुग़ल गार्डन , राष्ट्रपति भवन , नयी दिल्ली
बहुत सुन्दर और मनभावन अभिव्यक्ति...
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