कुछ दिनों पहले की बात है। मैं बेटे के पास देहरादून गई हुई थी। देहरादून अपने आप में खूबसूरत शहर के साथ मिज़ाज़ का भी नायाब शहर है । गर्मियों में सुखद मौसम का मज़ा और प्राकृतिक ठंडक हो तो, बस और क्या चाहिए !!
यूँ ही अकेले नए शहर में घूमने का आनंद ही कुछ और है। लम्बे लम्बे दूर तक चलते रास्ते, आकाश चूमते पेड़, न किसी से जान पहचान , न किसी की दुआ सलाम , बस अपने मन से निकल जाओ। जहाँ मर्ज़ी रूककर किसी अजनबी से थोड़ा उस एरिया का आईडिया ले लेती थी तो कभी किसी बच्चा बौद्ध भिक्षु को देखकर उनके साथ सेल्फ़ी लेती तो कभी किसी फल वाले के साथ फल खरीदने के बहाने बातचीत, एक अजीब सी आत्म संतुष्टि सी होती थी।
खैर, उस दिन भी मैंने सोचा, चलो, जाकर उस फल वाले से बतियाते है और मैं निकल पड़ी। आम का मौसम है तो क्यों न आम खरीदा जाये और फिर उस फल वाले से बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ। 'क्या आप मुसलमान है' फल वाले मियां साहब ने पूछा तो मैं चौंकी, फिर मुस्करा दी। मैंने पूछा ' क्यों '। 'मुझे लगा आप हमारी बिरादिरी की है । आपको देखकर ऐसा ही लगता है।' बड़े कॉन्फिडेंस के साथ मियां जी बोले …
मैंने भी सोचा, ठीक ही तो है । तपाक से बोली 'रूह से' और दोनों ज़ोर से हँस पड़े।
- निवेदिता दिनकर
०४ /०७/२०१५
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (06-07-2015) को "दुश्मनी को भूल कर रिश्ते बनाना सीखिए" (चर्चा अंक- 2028) (चर्चा अंक- 2028) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
:)
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया ...सच रूह से सभी एक हैं... ..फिर तो मियां भाई जी ने आम सस्ते दिए होंगें .... यूँ ही ......
जवाब देंहटाएंचलिए आम तो सस्ते मिल गए होगे आपको ...
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