चलों न कहीं,
बहुत दूर ...
देखों न सही,
वह नारंगी धधकती शाम...
कब से बुला रही …
और
तुम हम
एक दास्ताँ के कोख़ में …
हमेशा के लिए ...
अब बस!
हमें अजन्में ही रहने दिया जाए!!
- निवेदिता दिनकर
27 /07/2015
फोटो : मेरे द्वारा कालका ट्रैन से लिया गया … 'एक धधकती शाम'
अब बस अजन्मे रहा दिया जाए ........ !!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर !!
आपका आना, रचना को पसंद करना अच्छा लगा, धन्यवाद जी ...
हटाएंअनमोल अहसास
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