चारों तरफ लहू
और सब
एक दुसरे का लहू पी रहे
'वैम्पायर' ...
सब सिर एक तरफ
देह से अलग
मान लिया है देह ने भी
कि वह इस में खुश है |
जरा सी भी आपत्ति नहीं|
राक्षसी प्रवृत्ति
की
प्रथा आज 'डिमांड' में जो है|
शर्म से सूरज भी उग नहीं पाता
निढाल हो जाता है |
और चाँद तारें ...
मुँह छिपाये रात का सहारा लिए
कहते है ,
फिर समुद्र मंथन होगा
और क्षीर सागर को मथ कर
अमृत पान
लेकिन,
लेकिन
विष निगलने
कोई नीलकंठ ...
अबकी बार
शायद ही आये ...
- निवेदिता दिनकर
25/08/2017
फोटो क्रेडिट्स : मेरी नज़र "मंथन के लिए तैयार समुद्र ", लोकेशन : मंदारमनी , पश्चिम बंगाल
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (26-08-2017) को "क्रोध को दुश्मन मत बनाओ" (चर्चा अंक 2708) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
गणेश चतुर्थी की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'