आज सब तेरे करतूत को थू थू कर रहे है| तु इतना तो अपडेट होगा ही |
ब्रेकिंग न्यूज़ में जो तेरी फिल्म बन रही है, उस से तो तु वाकिफ़ है |
और तेरी प्यारी माँ ...
और तेरी प्यारी माँ ...
वह बेचारी अपने को कितना कोस रही है , शायद अपने को छुपाये छुपाये फिर रही हो |
तुझे पैदा करने से पहले से लेकर अब तक की सारी बातें सोचती जा रही होगी |
यह भी दिमाग़ में आ रहा होगा, कि, क्या ग़लती हो गयी उस से, कब तु इतना बीमार हो गया ?
इतना ओछा हो गया, इतने गर्त में गिर गया, कि लड़की देखी और विकृति आ गई|
तेरी माँ, घर के और बहु बेटियों के बारे में भी सोचकर दुःखी हो रही होगी कि कहीं ऐसी हवस ने कहीं और भी ... इस ख्याल मात्र से उसकी रूह काँप गयी होगी |
क्यों, आख़िर क्यों किया ? उक्त घटना से एक शाम पहले, या सुबह, या एक घंटा पहले सब कुछ कितना ठीक था ... यह क्या कर डाला ?
सब कुछ, वह बेचारी माँ सोच रही है जिसका तुझे रत्ती भर भी इल्म नहीं, विकास |
अब क्या करेगा ? क्या सोच रहा था, कि तु किसी ऐसे आदमी का बेटा है, और तु कुछ भी कर सकता है, कोई पाप कृत्य करेगा और बच जाएगा,
तो
सुन विकास
अब अपने ही घर में घुट घुट कर मरणासन्न जीने के अलावा तेरे पास और कोई चारा नहीं क्योंकि
बाहर हमारी पाठशाला तेरे इंतज़ार में है |
अच्छा हाँ, हम दिन में, रात में, शाम में, दोपहर में, जब मर्ज़ी हो, जहाँ मर्ज़ी हो, आएंगे जायेंगे, और जो मर्ज़ी हो पहनेंगे |
|| याद रखना, अगली बार तेरे घर में घुस कर मारेंगे ||
- एक और वर्णिका
०९ /० ८ /२०१७
नोट : यह एक खुली चिठ्ठी है और हर उस सिस्टम के लिए है जो बददिमाग, बेअदब , बेईमान है और उस पर नकेल कसने की सख्त जरूरत है |
तस्वीर : मेरे द्वारा , ताजमहल के पास , आगरा
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें