क्या बरसी हो, आज !!
जाने,
क्या क्या बरसा दिया, आज !!
अरे,
कोई ऐसे भी बरसता है, क्या ?
थम थम के बरसी …
बरस बरस के थमी …
कभी ठिठकी
कभी भटकी
कभी छिटकी
कभी सिमटी
ऐसा लगता है मानों,
मानों
यौवन फूट पड़ा हो
और
अपनी मादकता से सबको मदहोश करने का इरादा हो ॥
ज़रा हौले से,
यह महज़
बूँद नहीं है …
प्यास है हमारी …
रूह है हमारी …
…
- निवेदिता दिनकर
07/08/15
फ़ोटो : हमारी नज़र से, आज दुपहरिया में बरसी यह नासमझ " बूँदे "
हम वर्षा के साथ साथ आपकी कविता का आनन्द भी ले रहें हैं.
जवाब देंहटाएंअरे … क्या कहने आपका , रचना जी ...
हटाएंआभार :)
मैं शुक्रगुज़ार हूँ रूपचन्द्र शास्त्री जी ...
जवाब देंहटाएंआपको मेरे भाव अच्छे लगे, जी , आभार
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