शुक्रवार, 7 अगस्त 2015

क्या बरसी हो!!






क्या बरसी हो, आज !!
जाने,
क्या क्या बरसा दिया, आज !!
अरे,
कोई ऐसे भी बरसता है, क्या ?

थम थम के बरसी …      
बरस बरस के थमी  … 
कभी ठिठकी 
कभी भटकी 
कभी छिटकी
कभी सिमटी 

ऐसा लगता है मानों, 
मानों 
यौवन फूट पड़ा हो 
और 
अपनी मादकता से सबको मदहोश करने का इरादा हो ॥ 

ज़रा हौले से, 
यह महज़ 
बूँद नहीं है  … 

प्यास है हमारी … 
रूह है हमारी  … 
   …

- निवेदिता दिनकर  
  07/08/15

फ़ोटो :  हमारी नज़र से, आज दुपहरिया में बरसी यह नासमझ " बूँदे " 

4 टिप्‍पणियां:

  1. हम वर्षा के साथ साथ आपकी कविता का आनन्द भी ले रहें हैं.

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    1. अरे … क्या कहने आपका , रचना जी ...
      आभार :)

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  2. मैं शुक्रगुज़ार हूँ रूपचन्द्र शास्त्री जी ...

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  3. आपको मेरे भाव अच्छे लगे, जी , आभार

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