मंगलवार, 18 नवंबर 2014

आखेट


दिनदहाड़े, 
या रात का सन्नाटा  … 
किवाड़ों के पीछे, 
या खुला आँगन … 
चकाचौंध रौशनी,  
या बंद दरवाज़ा …   
स्कूल, 
कॉलेज, 
दफ्तर,
अस्पताल  ... 
असीमित दायरा ...

भेद दो,  
फाड़ दो, 
क्योंकि 

तुम मेरे आखेट हो।   
सिर्फ आखेट॥ 

- निवेदिता दिनकर
  १८/११/२०१४  

फ़ोटो क्रेडिट्स - उर्वशी दिनकर "बरसात की एक रात " लोकेशन - दिल्ली 

1 टिप्पणी:

  1. जब तक पृथ्वी, तब तक रहेंगे शिकारी और होते रहेंगे शिकार.......... आखिर आखेट का शौक कब होगा ख़त्म !! निरुत्तर कर दिया

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