दिनदहाड़े,
या रात का सन्नाटा …
किवाड़ों के पीछे,
या खुला आँगन …
चकाचौंध रौशनी,
या बंद दरवाज़ा …
स्कूल,
कॉलेज,
दफ्तर,
अस्पताल ...
असीमित दायरा ...
भेद दो,
फाड़ दो,
क्योंकि
तुम मेरे आखेट हो।
सिर्फ आखेट॥
- निवेदिता दिनकर
१८/११/२०१४
फ़ोटो क्रेडिट्स - उर्वशी दिनकर "बरसात की एक रात " लोकेशन - दिल्ली
जब तक पृथ्वी, तब तक रहेंगे शिकारी और होते रहेंगे शिकार.......... आखिर आखेट का शौक कब होगा ख़त्म !! निरुत्तर कर दिया
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