बुधवार, 12 नवंबर 2014

अंतर्नाद


सुनकर मेरे हसीं ख्वाब …
मखमली साया,
आँखों की प्यास,
कमलिनी कामना,
मन की परी,
बोली …
ले चल दूर कहीं,
आम बागानों
से होते हुए,
दरिया से सटे हुए …
झिलमिल तारों
के छाँव,
तरुण यशस्वी भाव …
बस
मैं
और
मेरा अंतर्नाद।
लिए
रजनीगंधा सी सौगात॥
तो
ख़्वाबों की झोली यूँ ही सजती रहेगी …
यूँ ही सजती रहेगी …

- निवेदिता दिनकर

फोटो क्रेडिट्स - उर्वशी दिनकर " झिलमिल "

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