जी टी एक्सप्रेस!
बस यही वाली आवाज़, यही वाली!!
पौं की हौरन बजाती तेज़ रफ़्तार से कोई गाड़ी निकल जाये!!!
हम अपनी आरक्षित बर्थ पर आराम से बैठ कर खिड़की के बाहर रात साढ़े नौ बजे देखने की नाकामयाब कोशिश करते रहे।
अब दिख रहा है एक लगभग सो चुका प्लेटफार्म।
सारी बेंचे खाली, सिवाय एक औरत के, और वह भी इस लौटती ठंड में जब नैनीताल, अल्मोड़ा सब जगह मौसम सफेद भक्काट हो रहा हो।
वह अकेली लगभग-लगभग खाली ठंडी रात में यहां क्या कर रही है?
एक वीडियो बना लिया सोचकर...
न, न , न
दिल ने कहा, अरे कहीं जा रही होगी!!
ट्रेन सरक रही है और दबी बुझी रौशनी में दूर तक मुझे कोई भी नहीं दिखा।
वह प्लेटफार्म भी दो या तीन नंबर, जहां गाड़ियां कम ही रुका करती है।
वेज पुलाव, वेज थाली, कमसम का ...
और अब धीरे धीरे बत्तियां भी बुझने लगी, समय बाइस पंद्रह।
थिरकन गंतव्य तक पहुंचने में कामयाब होते हुए।
- निवेदिता दिनकर
०४/०२/२०२२
बहुत सुंदर और रोचक चित्रण
जवाब देंहटाएंबहुत शुक्रिया ज्योति दा ... आप जो आये
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