सड़क के दोनों तरफ हरियाली होती है तो सफर खुद ब खुद ख़ुदा हो जाता है |
सड़क के एक तरफ पेड़ पौधे लताएं पत्ते दिख जाने पर भी, आबोहवा सुकूनदायक, खूबसूरत और आनंदमय हो जाता है कुछ परिमाण ...
पर
यही सफर वीराने और सूखे से होकर गुजरता है जब, तब गुजरे दिनों की ठंडक , ख़ूबसूरती और ख़ुदा को बक्से से बाहर बुलाकर खुद को चमत्कार दिखाना होता है |
चमत्कार !! ??
दिखता बंद आँखों से जो ,
चिड़ियों के कलरव सा स्पर्श ...
ओस से भीगी टेबिल, कुर्सियां जो रात भर गपशप में बाहर रहकर चांदनी की सिसकियों में डुबकी लगाती रही हो ...
अखबार के पन्नों पर नहीं आ पाने वाली बेखौफ़ खबरों की आज़ाद हँसी ...
कोयले के देह को छूती लहराती लिपटने को आतुर नारंगी लौ ...
मेरी मुक्ति ने अभी नवयौवना का रूप लिया भर ....
- निवेदिता दिनकर
२६/०२/२०२१
सुन्दर अहसासों का खूबसूरत सृजन..मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है..सादर..
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंजय मां हाटेशवरी.......
आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
आप की इस रचना का लिंक भी......
28/02/2021 रविवार को......
पांच लिंकों का आनंद ब्लौग पर.....
शामिल किया गया है.....
आप भी इस हलचल में. .....
सादर आमंत्रित है......
अधिक जानकारी के लिये ब्लौग का लिंक:
https://www.halchalwith5links.blogspot.com
धन्यवाद
मन न जाने कैसे कैसे चमत्कारों से घिरा रहता है।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर।
जवाब देंहटाएं