सोमवार, 1 मार्च 2021

धीरे धीरे हौले हौले ...




 नदी के किनारे एक बड़ा पीपल का पेड़ था |

उसके तने के छोटे छेद में चीची चींटी ने अपना घर बना रखा था | वह उसमे बड़े आराम से रहती थी ...


ऐसे किस्सों को दोबारा खोज रही हूँ ...
धीरे धीरे हौले हौले ...

- निवेदिता दिनकर
01/03/2021


2 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (03-03-2021) को     "चाँदनी भी है सिसकती"  (चर्चा अंक-3994)    पर भी होगी। 
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    मित्रों! कुछ वर्षों से ब्लॉगों का संक्रमणकाल चल रहा है। आप अन्य सामाजिक साइटों के अतिरिक्त दिल खोलकर दूसरों के ब्लॉगों पर भी अपनी टिप्पणी दीजिए। जिससे कि ब्लॉगों को जीवित रखा जा सके। चर्चा मंच का उद्देश्य उन ब्लॉगों को भी महत्व देना है जो टिप्पणियों के लिए तरसते रहते हैं क्योंकि उनका प्रसारण कहीं हो भी नहीं रहा है। ऐसे में चर्चा मंच विगत बारह वर्षों से अपने धर्म को निभा रहा है। 
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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 
    --  
    अपने बलॉग से ताता हटाइए।
    मैट सलेक्ट नहीं होता है चर्चा के लिए।

    जवाब देंहटाएं